tag:blogger.com,1999:blog-7449875077341313532.post3901546794053742213..comments2023-07-31T11:04:07.597-07:00Comments on Chintanpal. चिन्तनपल: आख़िर कविता ही क्यों Sp Sudheshhttp://www.blogger.com/profile/02398620807527835617noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-7449875077341313532.post-1095863045136095812013-01-24T07:01:36.336-08:002013-01-24T07:01:36.336-08:00'एक दिल से दूजे दिल तक ...
अहसासों की खुशबू ...'एक दिल से दूजे दिल तक ...<br />अहसासों की खुशबू फैले, <br />महके-महके, रंग-बिरंगे<br />शब्दों के जामे पहने,<br />हर भाव खिले नव-रूप लिए <br />मुस्कानों में भीगे नयन,<br />दिल से दिल की दूरी हो कम<br />जब 'कविता' ऐसी चाल चले !'<br /> मुझे साहित्य का कोई ख़ास ज्ञान नहीं है। साहित्य एक सागर के समान है। उसमें डुबकी लगाकर , उसमें से कोई मोती चुन कर ला सके तो इससे अच्छा क्या होगा? मगर फिर भी , मेरे हिसाब से , दिल से निकली बात जितने सरल व सहज ढंग से लिखी जाए उतनी ही वो मन को भाती है ! किसी बंधन में बंध कर लिखने से वो बात अपना मूल रूप खो देती है !<br />मैं पहली बार आपके ब्लॉग में आई हूँ ! मुझे जो ठीक लगा वो विचार आपके सामने रख दिया। आशा है, कुछ ग़लत लिख दिया हो तो आप क्षमा कर देंगे !:)<br />~सादर Anita Lalit (अनिता ललित ) https://www.blogger.com/profile/01035920064342894452noreply@blogger.com