8 जनवरी 2015

संस्कृत अब भी बोली जाती है



     पिछले कुछ दिनों से संस्कृत के विरोध में कुछ देशी और विदेशी स्वर सुनाई दे रहे 
हैं । केन्द्रीय विद्यालयों में जर्मन के स्थान पर संस्कृत को तृतीय भारतीय भाषा के रूप पढ़ाये जाने 
की व्यवस्था की गई है , जिस को लेकर अनेक लोगों ने फेसबुक पर नकारात्मक टिप्पणियाँ 
की हैं । संस्कत को मृत भाषा बताया जा रहा है , जब कि देश के कुछ स्थानों पर वह अब 
भी बोली जा रही है और अनेक संस्कृत प्रेमी उस में साहित्य लिख रहे हैं और अनेक स्थानों 
से संस्कृत में पत्रिकाएँ प्रकाशित  हो रही हैं ।
    फेसबुक पर ही यह रोचक समाचार पढनें को मिला , जिसे मैं पाठकों के अवलोकनार्थ 
नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ । 
-- सुधेश 

संस्कृत अब भी बोली जाती है 

लगभग 2000 की जनसंख्या और 250 परिवारों वाले
मुत्तुरू गाँव कर्नाटक के शिमोगा शहर से 10
किमी.दुर है । तुंग नदी के किनारे बसे इस गाँव मे
लोगो की आपसी बोलचाल की भाषा संस्कृत है ।
सिर्फ एक दुसरे का हालचाल जानने के लिए
ही नही बल्कि फोन पर बात करने,दुकान से सामान
खरीदने के समय भी संस्कृत मे ही वार्तालाप
देखने को मिलता है । यहाँ अब कोई
नही पुछता कि संस्कृत सीखने से उन्हे
क्या फायदा होगा ? इससे
नौकरी मिलेगी या नही ?
संस्कृत अपनी भाषा है और इसे हमे सीखना है,बसंत
यही भाव लोगो के मन मे है । वैसे इस गाँव मे
संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है लेकिन
आधुनिक समय की आवश्यकताओ के अनुरूप इसे
संवारा है संस्कृत भारती ने ।
यहाँ बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं- सभी बहुत
ही सहजता से संस्कृत मे बात करते है । यहाँ तक
कि क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए
भी बच्चे संस्कृत में ही बात करते हैं। गाँव के
सभी घरों की दीवारों पर लिखे हुए बोध वाक्य
संस्कृत में ही हैं।
इस गाँव में बच्चों की प्रारंभिक
शिक्षा संस्कृत में होती है। बच्चों को छोटे-
छोटे गीत संस्कृत में सिखाये जाते हैं।
चंदा मामा जैसी छोटी-
छोटी कहानियाँ भी संस्कृत
में ही सुनाई जाती हैं। बात सिर्फ छोटे
बच्चों की ही नहीं है, गाँव के उच्च
शिक्षा प्राप्त युवक प्रदेश के बड़े
शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालयों में
संस्कृत पढ़ा रहे हैं और कुछ साफ्टवेयर
इंजीनियर के रूप में बड़ी कंपनियों में काम कर
रहे हैं। इस ग्राम के 150 से अधिक युवक व
युवतियाँ “आईटी इंजीनियर” हैं और बाहर काम करते
हैं। विदेशों से भी अनेक व्यक्ति यहाँ संस्कृत
सीखने आते हैं।
संस्कृत भारती की शाखा यहाँ विगत 25 वर्षों से
संस्कृत सिखा रही है। यहाँ पहला दस दिवसीय
संस्कृत संभाषण वर्ग 1982 में लगा था। इस वर्ग
में ग्राम के अधिसंख्य लोगों ने भाग लिया था।
उसके बाद तो जन-जन के ह्रदय में संस्कृत ऐसे
घर करती चली गयी कि उनके घरों में
छोटा बच्चा पहले शब्द का उच्चारण संस्कृत में
ही करता है ।

---अविनाश सिंह के सौजन्य से ।
(फेसबुक में प्रकाशित )

2 टिप्‍पणियां:

  1. संस्कृत तो हमारी संस्कृति का वट वृक्ष है..
    बहुत सुन्दर सार्थक अनुकरणीय प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. कविता रावत जी आप ने कोई प्रतिक्रिया नहीं लिखी ।

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