मातृ भाषा बनाम अंग़ेज़ी
जब अटल जी की सरकार में श्री राजनाथ सिंह जी भूतल परिवहन मंत्री थे तो रूस के उप प्रधान मंत्री भारत पधारे थे.और उनके द्वारा श्री राजनाथ सिंह के साथ सरकारी बैठक की थी.मंत्रालय के अधिकारीयों द्वारा अंग्रेजी रूसी दुभाषिये की व्यवस्था की गयी थी.लेकिन जब श्री राजनाथ सिंह जी को ज्ञात हुआ की रूसी नेता अपनी मात्रभाषा रूसी में वार्तालाप करेंगे और दुभाषिया राजनाथजी की अंग्रेजी वार्ता को रूसी में अनुवाद करेंगे और उनकी रूसी को अंग्रेजी में अनुवाद करेंगे तो उन्होंने रूसी हिंदी दुभाषिये की व्यवस्था किये जाने का निर्देश दिया.वार्ता के दौरान श्री राजनाथ जी ने हिंदी का प्रयोग किया जबकि रूसी नेता ने अपनी मात्रभाषा रूसी में वार्ता की.जो वार्ता केवल पंद्रह मिनट के लिए निर्धारित थी वह निर्धारित समय से बहुत ज्यादा अवधि पेंतालिस मिनट तक चली और विदा लेने से पूर्व रूसी उपप्रधान मंत्री ने श्री राजनाथ सिंह जी की अपनी मात्रभाषा हिंदी में वार्ता करने पर बहुत प्रशंसा की ।
हाल में ही श्री राजनाथ सिंह जी ने एक बयान में ये कह दिया की अंग्रेजी के कारण हम अपनी संस्कृति से कटते जा रहे हैं.बस फिर क्या था.सारे कांग्रेसियों को मानो आलोचना का एक नया मुद्दा मिल गया.शशि थरूर, मनीष तिवारी और अन्य सेकुलर ब्रिगेंड्स पिल पड़े राजनाथजी को पिछड़ा साबित करने.मानो अंग्रेजी इस देश का प्राण हो.वस्तुतः अंग्रेजी के प्रति इन मेकाले-मानस-पुत्रों का व्यामोह इतना अधिक है की देश के स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक हिंदी और अन्य देशी भाषाओँ को उनका उचित सम्मान नहीं मिल पाया है ।
१९८० की भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान की प्रवेश परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करनेवाले श्री श्याम रूद्र पाठक द्वारा को दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस मुख्यालय और सोनिया गाँधी के आवास पर २२५ दिनों से धरना देने के कारण गिरफ्तार कर लिया. उनका अपराध ये था की वो संविधान के अनिच्छेद ३४८ में इस आशय का संशोधन करने की मांग कर रहे थे की देश के सर्वोच्च न्यायालय में सभी देशी भाषाओँ में तथा उच्च न्यायालयों में उन राज्यों की भाषाओँ में कार्य करने की सुविधा प्राप्त हो सके.लेकिन हमारे प्रगतिशील नेताओं यहाँ तक की स्वयं को हिंदी का पक्षधर बताने वाले नेताजी मुलायम सिंह यादव ने भी इस मामले में एक शब्द नहीं कहा ।
ये देश का दुर्भाग्य ही है की देश का प्रधान मंत्री ऑक्सफ़ोर्ड में अंग्रेजों को और उनके देश को इस बात के लिए धन्यवाद करते हैं की उन्होंने हमें सबसे बड़ा तोहफा अंग्रेजी के रूप में दिया है.स्वभाषा का अभिमान आज इनकी नजर में सम्मान का सूचक न होकर पिछड़ेपन की निशानी है.अमेरिका सहित पूरी दुनिया में अंग्रेजी से अधिक स्पेनिश बोलने वाले हैं. फ़्रांस, जर्मनी, इटली और लेतिन अमरीकी देशों में अंग्रेजी को कोई पूछता नहीं है.चीन, जापान, कोरिया आदि में भी यही हाल है.लेकिन हमें मेकाले ने ऐसी घुट्टी पिलाई है कि हमारे यहाँ काले अंग्रेजों की कमी नहीं है ।
विद्यार्थियों की सीखने की क्षमता के सम्बन्ध में हुई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में ७३ देशों में भारत का स्थान ७2वां रहा था. शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (एसर २०११) के अनुसार २०१० में पांचवी की कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा दूसरी कक्षा की पुस्तक पढने की क्षमता ५३.७% से घटकर २०११ में केवल ४८.२% रह गयी थी.कक्षा ३ के विद्यार्थियों द्वारा साधारण गणित के सामान्य जोड़ घटाव की क्षमता ३६.३% से घटकर २९.९% रह गयी थी.सर्कार के दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों, सर्व शिक्षा अभियान और शिक्षा का अधिकार अधिनियम में लगभग एक लाख करोड़ से अधिक का भारी खर्च करने के बाद भी सीखने की क्षमता में कोई सुधार नहीं हुआ है.इस सब के लिए भी मात्र भाषा में शिक्षण के स्थान पर अंग्रेजी में शिक्षण पर अधिक जोर देना ही है ।
आजकल अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा की दुकानें हर गली मोहल्ले में खुली हुई हैं.जबकि इन स्कूलों में शिक्षक भी ठीक से अंग्रेजी नहीं बोल सकते ।
कुछ देशों में इस बारे में प्रयोग किये गए.जाम्बिया में एक प्रयोग में छात्रों को प्रथम कक्षा में ही अंग्रेजी और मात्रभाषा की शिक्षा दी गयी.जबकि दूसरे समूह को अंग्रेजी की शिक्षा कक्षा दो से दी गयी.कुछ वर्ष बाद जांच में पाया गया की प्रथम कक्षा से अंग्रेजी व मात्रभाषा में पढने वाले बच्चे दोनों ही भाषाओँ में फिसड्डी पाए गए जबकि दूसरे वर्ग के बालक जिन्हें अंग्रेजी की शिक्षा कक्षा दो से दी गयी थी,वो बच्चे अंग्रेजी लिखने, पढने में और मात्रभाषा में भी काफी बेहतर पाए गए । सर्कार ने इसके आधार पर सारे देश में अंग्रेजी की शिक्षा दूसरी तीसरी कक्षा से देने की व्यवस्था लागू करदी ।
ये जानकारी श्री स्वामीनाथन एस. अंक्लेसरिया ऐय्यर ने २२ जनवरी २०१२ को टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में छपे अपने लेख में दी थी.श्री ऐय्यर पर कोई भगवाकरण का आरोप नहीं लगा सकता है.क्या कांग्रेस के वो आलोचक जो आज राजनाथ सिंह जी को अंग्रेजी का विरोध करने पर कोस रहे हैं, इस बारे में तथ्यों के आलोक में सुसंगत ढंग से विचार करेंगे ।
-- अनिल गुप्ता
( प्रवक्ता डाट काम से साभार )
२५ जुलाई २०१३ को प़काशित ।
जब अटल जी की सरकार में श्री राजनाथ सिंह जी भूतल परिवहन मंत्री थे तो रूस के उप प्रधान मंत्री भारत पधारे थे.और उनके द्वारा श्री राजनाथ सिंह के साथ सरकारी बैठक की थी.मंत्रालय के अधिकारीयों द्वारा अंग्रेजी रूसी दुभाषिये की व्यवस्था की गयी थी.लेकिन जब श्री राजनाथ सिंह जी को ज्ञात हुआ की रूसी नेता अपनी मात्रभाषा रूसी में वार्तालाप करेंगे और दुभाषिया राजनाथजी की अंग्रेजी वार्ता को रूसी में अनुवाद करेंगे और उनकी रूसी को अंग्रेजी में अनुवाद करेंगे तो उन्होंने रूसी हिंदी दुभाषिये की व्यवस्था किये जाने का निर्देश दिया.वार्ता के दौरान श्री राजनाथ जी ने हिंदी का प्रयोग किया जबकि रूसी नेता ने अपनी मात्रभाषा रूसी में वार्ता की.जो वार्ता केवल पंद्रह मिनट के लिए निर्धारित थी वह निर्धारित समय से बहुत ज्यादा अवधि पेंतालिस मिनट तक चली और विदा लेने से पूर्व रूसी उपप्रधान मंत्री ने श्री राजनाथ सिंह जी की अपनी मात्रभाषा हिंदी में वार्ता करने पर बहुत प्रशंसा की ।
हाल में ही श्री राजनाथ सिंह जी ने एक बयान में ये कह दिया की अंग्रेजी के कारण हम अपनी संस्कृति से कटते जा रहे हैं.बस फिर क्या था.सारे कांग्रेसियों को मानो आलोचना का एक नया मुद्दा मिल गया.शशि थरूर, मनीष तिवारी और अन्य सेकुलर ब्रिगेंड्स पिल पड़े राजनाथजी को पिछड़ा साबित करने.मानो अंग्रेजी इस देश का प्राण हो.वस्तुतः अंग्रेजी के प्रति इन मेकाले-मानस-पुत्रों का व्यामोह इतना अधिक है की देश के स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक हिंदी और अन्य देशी भाषाओँ को उनका उचित सम्मान नहीं मिल पाया है ।
१९८० की भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान की प्रवेश परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करनेवाले श्री श्याम रूद्र पाठक द्वारा को दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस मुख्यालय और सोनिया गाँधी के आवास पर २२५ दिनों से धरना देने के कारण गिरफ्तार कर लिया. उनका अपराध ये था की वो संविधान के अनिच्छेद ३४८ में इस आशय का संशोधन करने की मांग कर रहे थे की देश के सर्वोच्च न्यायालय में सभी देशी भाषाओँ में तथा उच्च न्यायालयों में उन राज्यों की भाषाओँ में कार्य करने की सुविधा प्राप्त हो सके.लेकिन हमारे प्रगतिशील नेताओं यहाँ तक की स्वयं को हिंदी का पक्षधर बताने वाले नेताजी मुलायम सिंह यादव ने भी इस मामले में एक शब्द नहीं कहा ।
ये देश का दुर्भाग्य ही है की देश का प्रधान मंत्री ऑक्सफ़ोर्ड में अंग्रेजों को और उनके देश को इस बात के लिए धन्यवाद करते हैं की उन्होंने हमें सबसे बड़ा तोहफा अंग्रेजी के रूप में दिया है.स्वभाषा का अभिमान आज इनकी नजर में सम्मान का सूचक न होकर पिछड़ेपन की निशानी है.अमेरिका सहित पूरी दुनिया में अंग्रेजी से अधिक स्पेनिश बोलने वाले हैं. फ़्रांस, जर्मनी, इटली और लेतिन अमरीकी देशों में अंग्रेजी को कोई पूछता नहीं है.चीन, जापान, कोरिया आदि में भी यही हाल है.लेकिन हमें मेकाले ने ऐसी घुट्टी पिलाई है कि हमारे यहाँ काले अंग्रेजों की कमी नहीं है ।
विद्यार्थियों की सीखने की क्षमता के सम्बन्ध में हुई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में ७३ देशों में भारत का स्थान ७2वां रहा था. शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (एसर २०११) के अनुसार २०१० में पांचवी की कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा दूसरी कक्षा की पुस्तक पढने की क्षमता ५३.७% से घटकर २०११ में केवल ४८.२% रह गयी थी.कक्षा ३ के विद्यार्थियों द्वारा साधारण गणित के सामान्य जोड़ घटाव की क्षमता ३६.३% से घटकर २९.९% रह गयी थी.सर्कार के दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों, सर्व शिक्षा अभियान और शिक्षा का अधिकार अधिनियम में लगभग एक लाख करोड़ से अधिक का भारी खर्च करने के बाद भी सीखने की क्षमता में कोई सुधार नहीं हुआ है.इस सब के लिए भी मात्र भाषा में शिक्षण के स्थान पर अंग्रेजी में शिक्षण पर अधिक जोर देना ही है ।
आजकल अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा की दुकानें हर गली मोहल्ले में खुली हुई हैं.जबकि इन स्कूलों में शिक्षक भी ठीक से अंग्रेजी नहीं बोल सकते ।
कुछ देशों में इस बारे में प्रयोग किये गए.जाम्बिया में एक प्रयोग में छात्रों को प्रथम कक्षा में ही अंग्रेजी और मात्रभाषा की शिक्षा दी गयी.जबकि दूसरे समूह को अंग्रेजी की शिक्षा कक्षा दो से दी गयी.कुछ वर्ष बाद जांच में पाया गया की प्रथम कक्षा से अंग्रेजी व मात्रभाषा में पढने वाले बच्चे दोनों ही भाषाओँ में फिसड्डी पाए गए जबकि दूसरे वर्ग के बालक जिन्हें अंग्रेजी की शिक्षा कक्षा दो से दी गयी थी,वो बच्चे अंग्रेजी लिखने, पढने में और मात्रभाषा में भी काफी बेहतर पाए गए । सर्कार ने इसके आधार पर सारे देश में अंग्रेजी की शिक्षा दूसरी तीसरी कक्षा से देने की व्यवस्था लागू करदी ।
ये जानकारी श्री स्वामीनाथन एस. अंक्लेसरिया ऐय्यर ने २२ जनवरी २०१२ को टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में छपे अपने लेख में दी थी.श्री ऐय्यर पर कोई भगवाकरण का आरोप नहीं लगा सकता है.क्या कांग्रेस के वो आलोचक जो आज राजनाथ सिंह जी को अंग्रेजी का विरोध करने पर कोस रहे हैं, इस बारे में तथ्यों के आलोक में सुसंगत ढंग से विचार करेंगे ।
-- अनिल गुप्ता
( प्रवक्ता डाट काम से साभार )
२५ जुलाई २०१३ को प़काशित ।
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