5 मार्च 2015

परपीडन में मनोरंजन

                      पर पीडन में मनोरंजन 

     हाल के दिनों में एक लघु फ़िल्म Indaia's daughter की सर्वत्र चर्चा है , जिसे बृटेन की एक महिला 
लेसली उड़विन ने बनाया है ।इस में दिसम्बर २०१२ में दिल्ली में एक मासूम लड़की के बलात्कारी का इन्टरव्यू 
दिखाया गया है । इसे भारत सरकार ने तो प्रतिबन्धित कर दिया है , पर बीबीसी द्वारा दिखाया जा रहा है । हिन्दुस्तान टाइम्स के संवाददाता को उड़विन ने बताया ( ५ मार्च २०१५ को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ) 
कि यह फ़िल्म न्यूयार्क आदि अमेरिकी शहरों और लन्दन में भी दिखाई जाएगी ।( शायद अब तक यह वहाँ दिखाई 
जा चुकी हो ) विश्व के अन्य देशों में भी यह दिखाई जा सकती है या दिखाई जा रही होगी । भारत सरकार 
की मनाही के बाद भी बीबीसी ने इसे दिखाया । 
        इस से पता चलता है कि विदेशी लोगों , विशेषत: बृटेन के लोगों और बीबीसी को भारत की ग़रीबी , 
अपराध , गन्दगी और अपराधी मनोवृत्ति के लोग ही प्रदर्शन के विषय दिखते हैं और उन्हें परपीडन में ही 
मनोरंजन दिखता है । उड़विन ने हिन्दुस्तान टाइम्स के संवाददाता को बताया कि खुद उस का भी किसी 
ने बलात्कार किया था । ( यह बात चीत हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी है ) तो उस ने अपने बलात्कारी का 
इन्टरव्यू क्यों नही लिया? उस ने भारत को बदनाम करने के लिए एक मासूम भारतीय लड़की के 
बलात्कारी का इन्टरव्यू लेना और प्रचारित करना ज़रूरी समझा । 
          यह भी एक विडम्बना है कि उड़विन ने बलात्कारी से तिहाड़ जेल में जा कर बात की ।  उसे जिन 
अधिकारियों ने ऐसा करने की अनुमति दी उन की ग़लती है । शायद उन्हें यह पता नहीं होगा कि उड़विन 
क्या गुल खिलाएगी । 
              फेस बुक पर इस लघु फ़िल्म के विरोध में अधिक लिखा गया है , पर कुछ लोग इस फ़िल्म को आपत्तिजनक नहीं मानते । फ़िल्म को देखे बिना उस पर टिप्पणियाँ हो रही हैं । आज ( ५ मार्च २०१५ ) को 
मैं ने यूट्यूब पर यह फ़िल्म देखी । यह बलात्कार विरोधी ंफिल्म है , पर एक बलात्कारी ने अपने बचाव में 
जो कहा और उस के वक़ील ने जो कहा , वह पीड़िता लड़की को ही बलात्कार के लिए उत्तरदायी बताने की कोशिश है । इस से बलात्कारी की विकृत मानसिकता का पता चलता है , जिस का सहारा ले कर 
अन्य विकृत मन वाले लोग बलात्कार की ओर जा सकते हैं । इस तरह यह फ़िल्म प्रकारान्तर से बलात्कार 
विरोधी न रह कर उस के औचित्य के तर्क भी तलाशती दिखती है । भविष्य का बलात्कारी अपने बचाव 
के तर्क इस फ़िल्म से सीख सकता है । इस दृष्टि से इस पर प्रतिबन्ध लगाना उचित है ।
          सरकार इस पर प्रतिबन्ध न लगाती तो क्या करती ? वह जनता की उत्तेजित भावना की उपेक्षा 
करने की दोषी बतांई जाती । अब प्रतिबन्ध लगाने पर भी उस की आलोचना हो रही है और अभिव्यक्ति
की आज़ादी की दुहाई दी जा रही है । संसद में अनेक दलों की सदस्याएं  इस बात के लिए हंगामा करती 
हैं कि दो वर्षों  बाद भी सरकार ने बलात्कारियों को दण्ड नहीं दिया । दण्ड तो अदालत देती 
है । फिर संसद में हंगामा क्यों ? 
     इस घटना पर रचना त्रिपाठी के ब्लाग टूटी फूटी में रचना त्रिपाठी जी का एक लेखक छपा , जिस पर 
टिप्पणी करते हुए डी सी श्रीवास्तव मे वाजिब सवाल उठाते हुए लिखा --
 " मीडिया पहले समाजसेवा के लिए समाज का दर्पण हुआ करता था , परन्तु वह आज खुद को बेचने में और दूसरों को बिकने में मदद करने वाली एक संस्था हो गयी है। बीबीसी के इस डॉक्यूमेंट्री को पूरा देखे बिना टिप्पणी करना तो उचित नहीं है कि इसको बनाने के पीछे उनका क्या आशय था, और इस बलात्कार की डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से भारत में होने वाले बलात्कार में किस भावना की महत्ता को वो सिद्ध करना चाहते हैं। सबसे गंभीर बात यह है कि तिहाड़ जेल में इस प्रकार के कैदी के इंटरव्यू की आज्ञा कैसे दी गई  जबकि विदेशी फिल्मकारों को जब भारत में शूटिंग करने की अनुमति दी जाती है तब उन्हें खास हिदायत दी जाती है कि शूटिंग में वे इस बात का ध्यान दें कि भारत की इमेज इस फिल्म के माध्यम से गलत ढंग से प्रस्तुत न हो। सबसे बड़ी बात यह कि जिस बलात्कारी का इंटरव्यू लिया गया था, उसका विचार बलात्कार के मामले में पूरे भारत के विचार का प्रतनिधित्व नहीं करता है। 
पश्चिमी मीडिया शुरू से ही भारत के नकारात्मक पक्ष को बढ़ा चढ़ा कर दुनिआ में प्रस्तुत करता  रहा है। जहाँ तक बलात्कार का प्रश्न है U.S., स्वीडन , फ्रांस , कनाडा , UK और जर्मनी , दक्षिण अफ्रीका १० शीर्षस्थ देशों में है जहाँ बलात्कार सर्वाधिक है। अतः बीबीसी को दूसरे के ऊपर कीचड उछलने के पहले अपने घर झांक कर देखना चाहिए। सरकार को ब्रिटिश सरकार तथा बीबीसी के साथ यह मामला दृढ़ता से उठाना चाहिए और भारत में जिन अधिकारिओं ने इसकी अनुमति दी है, इसकी जांच कर उन पर उचित कार्यवाही करनी चाहिए। " ( रचना त्रिपाठी के ब्लाग  टूटी फूटी में प्रकाशित लेख पर ४ मार्च सन २०१५ की टिप्पणी ) 
   मेरी सन्तुलित राय यह कि इस पिल्म पर प्रतिबन्ध उचित है , क्योंकि इस से चाहे बलात्कार बन्द नहीं होंगे  ,पर 
भारत के लोगों की विकृत मानसिकता का ढोल विदेशों मे  पीटा जाएगा , बल्कि पीटा जा रहा है । अभिव्यक्ति 
की आज़ादी का दुरुपयोग करने की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती । 

-- सुधेश 
३१४ सरल अपार्टमैन्ट्स , द्वारिका , सैक्टर १० 
दिल्ली ११००७५ 

लेबल     मनोरंजन --   बलात्कार - दिल्ली में बलात्कार - बीबीसी की करतूत 







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