- न्यूज़ीलैंड से रोहित कुमार 'हैप्पी' की इटली के मार्कों जोल्ली से बातचीत ।
इटली के हिन्दी भाषाविद् मार्को जोल्ली हिन्दी साहित्य में पीएचडी हैं। आपने भीष्म साहनी पर थीसिस लिखा है। भीष्म साहनी के उपन्यास का इटालियन में अनुवाद किया है। वे लगभग दस वर्षों से हिन्दी पढ़ा रहे हैं। उनको इस बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का भाषा पर केन्द्रित होना अच्छा लगा।
"मैंने अपनी पढ़ाई इटली से की है लेकिन अभ्यास भारत में ही किया है।"
क्या आप भारत आते-जाते रहते हैं?
"हाँ, मैं भारत आता जाता रहता हूँ। मैं पिछले बीस सालों से यहाँ आता हूँ। सात साल पहले मैं देहली यूनिवर्सिटी में इटालियन पढ़ाता था हिन्दी माध्यम से।" कुछ क्षण रुक कर मार्को मुस्कराते हुए कहते हैं, "मज़े की बात यह है कि पूरे विभाग में मैं ही अकेला था जो हिन्दी माध्यम से पढ़ाता था। बाकी लोग अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाते थे।"
इटली में हिन्दी किस स्तर पर पढ़ाई जाती है?
"वहाँ विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी पढ़ाई जाती है। देखिए, इंडिया के साथ दिक्कत ये है कि लोग ये सोचते हैं कि इंडिया में अंग्रेज़ी चलती है और यह सोचते हैं हिंदुस्तानियों की वजह से। हिंदुस्तानी यही बोलते हैं कि यहाँ आने के लिए हिन्दी सीखने की जरूरत नहीं है, यहाँ पर अँग्रेज़ी चलती है। जबकि यह सच नहीं!"
फिर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "मेरे ख्याल से अँग्रेज़ी बोलने वालों की संख्या होगा 10 प्रतिशत जो अच्छी अँग्रेज़ी बोलते हैं। अब इस अँग्रेज़ी के चक्कर में हमारे वहाँ के लोगों को लगता है कि हम क्यों हिन्दी सीखें जबकि कोई ज़रूरत है नहीं! मैं पिछले दस सालों से अपने वहाँ लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि भारत जाने के लिए कम से कम वहाँ की एक भाषा सीखनी जरूरी है। सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा तो हिन्दी ही है तो हम बोलते हैं कि हिन्दी ही सीखो।"
भाषा को लेकर आपके और किस प्रकार के अनुभव हैं?
"आप शुद्ध हिन्दी पढ़ाकर भी हिन्दी का विकास नहीं कर सकते। शुद्ध हिन्दी पढ़कर यदि बच्चे सब्जी वाले के पास जाते हैं तो वे उनकी बात नहीं समझ सकते और उन्हें ऐसे देखेंगे कि ये कहाँ से आए हैं। क्या बात कर रहे हैं? एक मध्यम रास्ता निकाला जाना चाहिए। भाषा लोगों से सम्पर्क करने का एक तरीका होता है।
व्याकरण वगैरह बहुत ज़रूरी होता है पर उससे भी अधिक ज़रूरी होता है भाषा को बोलना। हम हिन्दी पढ़ाते हुए इस बात का ध्यान रखते हैं कि लोगों को भारत की संस्कृति के बारे में भी जानकारी दें। हम यह भी समझाते हैं कि हिंदोस्तानियों से मिलने के लिए व भारत की संस्कृति को समझने के लिए भाषा सीखना बहुत ज़रूरी है।"
--- वेब दुनिया से साभार ।
( एम एल गुप्ता आदित्य के सौजन्य से )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Add