8 सितम्बर 2009
महावीर सरन जैन का आलेख : क्या उत्तर प्रदेश एवं बिहार हिन्दी भाषी राज्य नहीं हैं?
नामवर सिंह ने हाल ही में यह धमाकेदार वक्तव्य दिया - “हिंदी समूचे देश की भाषा नहीं है वरन वह तो अब एक प्रदेश की भाषा भी नहीं है। उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे राज्यों की भाषा भी हिंदी नहीं है। वहाँ की क्षेत्रीय भाषाएँ यथा अवधी, भोजपुरी, मैथिल आदि हैं।“ क्या सचमुच? नामवर के इस वक्तव्य पर असहमति के तीव्र स्वर दर्ज कर रहे हैं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व निर्देशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन.
आजकल देश के चिन्तक हिन्दी के अर्थ को लेकर सशंकित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति तथा हिन्दी के तथाकथित नामचीन आलोचक नामवर सिंह ने बैंगलुरु में आयोजित भारतीय भाषाओं का कुंभ सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए यह कहकर कि उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे राज्यों की भाषा भी हिन्दी नहीं है। वहाँ की क्षेत्रीय भाषाएँ यथा अवधी, भोजपुरी, मैथिल आदि हैं - सनसनी फैला दी है।
लंदन में 14 से 18 सितम्बर,1999 की अवधि में आयोजित छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिभागियों के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की ओर से भेंट देने के लिए हमने “ विश्व भाषा हिन्दी” शीर्षक पुस्तक प्रकाशित करायी थी जिसके आमुख में लेखक ने लिखा थाः
हिन्दी भाषा की अर्थवेत्ता, हिन्दी-उर्दू का सम्बन्ध, हिन्दी भाषा क्षेत्र तथा हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र आदि बिंदुओं को लेकर न केवल सामान्य व्यक्ति के मन में बहुत सी भ्रान्त धारणाएँ बनी हुई हैं बल्कि हिन्दी भाषा के कतिपय विद्वानों, आलोचकों तथा अध्येताओं का मन भी तत्संबंधित भ्रान्तियों से मुक्त नहीं है।
उपर्युक्त आमुख लिखते समय लेखक ने यह नहीं सोचा था कि ‘ हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योगदान’ जैसे ग्रन्थ के लेखक की बुद्धि भी इतनी भ्रमित हो सकती है। लेखक अभी भी यह निष्कर्ष निकालने में असमर्थ है कि नामवर सिंह ने जो वक्तव्य दिया है, वह भाषा विज्ञान सम्बंधी ज्ञान न होने के कारण है अथवा उनकी दलगत राजनीति के पूर्वाग्रह मतान्ध स्वार्थों से ग्रसित होने के कारण है।
संसार में ऐसा कोई भाषा क्षेत्र नहीं होता, जिसमें क्षेत्रगत भेद नहीं होते। कहावत है - चार कोस पर बदले पानी, आठ कोस पर बानी। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या 700-800 मिलियन (70 करोड़ से 80 करोड़) है तथा उसका भाषा क्षेत्र हिन्दी भाषा क्षेत्र की अपेक्षा बहुत विस्तृत है। चीनी भाषी क्षेत्र में जो भाषिक रूप बोले जाते हैं वे सभी परस्पर बोधगम्य नहीं हैं। जब पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक चीनी भाषा की विवेचना करते हैं तो किसी प्रकार का विवाद पैदा नहीं करते किन्तु नामवर सिंह जैसे विद्वान जब हिन्दी भाषा की विवेचना करते हैं तो हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत बोले जाने वाले हिन्दी भाषा के उपभाषा रूपों को भाषा का दर्जा दे देते हैं। हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत भारत के निम्नलिखित राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश समाहित हैं :-1. उत्तर प्रदेश 2. उत्तराखंड 3. बिहार 4. झारखण्ड 5. मध्य प्रदेश 6. छत्तीसगढ़ 7. राजस्थान 8. हिमाचल प्रदेश 9. हरियाणा 10. दिल्ली 11. चण्डीगढ़।
हिन्दी भाषा क्षेत्र में हिन्दी की मुख्यत: 20 बोलियाँ अथवा उपभाषाएँ बोली जाती हैं। इन 20 बोलियों अथवा उपभाषाओं को ऐतिहासिक परम्परा से पाँच वर्गों में विभक्त किया जाता है पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी , राजस्थानी हिन्दी, पहाड़ी हिन्दी और बिहारी हिन्दी।
1- पश्चिमी हिंदी – 1. खड़ी बोली 2 ब्रजभाषा 3. हरियाणवी 4. बुंदेली 5. कन्नौजी
2- पूर्वी हिंदी – 1. अवधी 2. बघेली 3. छत्तीसगढ़ी
3- राजस्थानी- 1. मारवाड़ी 2. जयपुरी 3. मेवाती 4. मालवी
4- पहाड़ी – 1. पूर्वी पहाड़ी 2.मध्यवर्ती पहाड़ी जिसमें कुमाऊंनी और गढ़वाली आती है 3. पश्चिमी पहाड़ी जिसमें हिमाचल प्रदेश की अनेक बोलियां आती हैं।
5- बिहारी भाषा – 1. मैथिली 2. भोजपुरी 3. मगही 4. अंगिका 5. बज्जिका
हिन्दी भाषा का क्षेत्र बहुत व्यापक है। हिन्दी भाषा क्षेत्र में ऐसी बहुत सी उपभाषाएँ हैं जिनमें पारस्परिक बोधगम्यता का प्रतिशत कम है किन्तु ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सम्पूर्ण भाषा क्षेत्र एक भाषिक इकाई है तथा इस भाषा-भाषी क्षेत्र के बहुमत भाषा-भाषी अपने-अपने क्षेत्रगत भेदों को हिन्दी भाषा के रूप में मानते एवं स्वीकारते आए हैं। भारत के संविधान की दृष्टि से यही स्थिति है। सन् 1997 में भारत सरकार के सैन्सस ऑफ इण्डिया द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में भी यही स्थिति है।
‘खड़ी बोली' हिन्दी भाषा क्षेत्र का उसी प्रकार एक भेद है, जिस प्रकार हिन्दी भाषा के अन्य बहुत से क्षेत्रगत भेद हैं। प्रत्येक भाषा क्षेत्र में अनेक क्षेत्रगत, वर्गगत एवं शैलीगत भिन्नताएँ होती हैं। प्रत्येक भाषा क्षेत्र में किसी क्षेत्र विशेष के भाषिक रूप के आधार पर उस भाषा का मानक रूप विकसित होता है, जिसका उस भाषा-क्षेत्र के सभी क्षेत्रों के पढ़े-लिखे व्यक्ति औपचारिक अवसरों पर प्रयोग करते हैं। पूरे भाषा क्षेत्र में इसका व्यवहार होने तथा इसके प्रकार्यात्मक प्रचार-प्रसार के कारण विकसित भाषा का मानक रूप भाषा क्षेत्र के समस्त भाषिक रूपों के बीच संपर्क सेतु का काम करता है तथा कभी-कभी इसी मानक भाषा रूप के आधार पर उस भाषा की पहचान की जाती है।
जिस प्रकार भारत अपने 28 राज्यों एवं 07 केन्द्र शासित प्रदेशों को मिलाकर भारतदेश है, उसी प्रकार भारत के जिन राज्यों एवं शासित प्रदेशों को मिलाकर हिन्दी भाषा क्षेत्र है, उस हिन्दी भाषा-क्षेत्र के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उनकी समष्टि का नाम हिन्दी भाषा है। हिन्दी भाषा क्षेत्र के प्रत्येक भाग में व्यक्ति स्थानीय स्तर पर क्षेत्रीय भाषा रूप में बात करता है। औपचारिक अवसरों पर तथा अन्तर-क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं सार्वदेशिक स्तरों पर भाषा के मानक रूप अथवा व्यावहारिक हिन्दी का प्रयोग होता है। आप विचार करे कि उत्तर प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है अथवा खड़ी बोली, ब्रजभाषा, कन्नौजी, अवधी, बुन्देली आदि भाषाओं का राज्य है। मध्य प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है अथवा बुन्देली, बघेली, मालवी, निमाड़ी आदि भाषाओं का राज्य है। राजस्थान हिन्दी भाषी राज्य है अथवा मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती आदि भाषाओं का राज्य है। प्रत्येक देश की एक राजधानी होती है तथा विदेशों में किसी देश की राजधानी के नाम से प्रायः देश का बोध होता है, किन्तु सहज रूप से समझ में आने वाली बात है कि राजधानी ही देश नहीं होता।
विदेश सेवा में कार्यरत अधिकारी जानते हैं कि कभी देश के नाम से तथा कभी उस देश की राजधानी के नाम से देश की चर्चा होती है। वे ये भी जानते हैं कि देश की राजधानी के नाम से देश की चर्चा भले ही होती है, मगर राजधानी ही देश नहीं होता। इसी प्रकार किसी भाषा के मानक रूप के आधार पर उस भाषा की पहचान की जाती है मगर मानक भाषा, भाषा का एक रूप होता है : मानक भाषा ही भाषा नहीं होती। इसी प्रकार खड़ी बोली के आधार पर मानक हिन्दी का विकास अवश्य हुआ है किन्तु खड़ी बोली ही हिन्दी नहीं है। तत्वतः हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उन सबकी समष्टि का नाम हिन्दी है। हिन्दी को उसके अपने ही घर में तोड़ने का षडयंत्र अब विफल हो गया है क्योंकि 1991 की भारतीय जनगणना के अंतर्गत जो भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है उसमें मातृभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने वालों की संख्या का प्रतिशत उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड राज्य सहित) में 90.11, बिहार (झारखण्ड राज्य सहित) में 80.86, मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ राज्य सहित) में 85.55, राजस्थान में 89.56, हिमाचल प्रदेश में 88.88, हरियाणा में 91.00, दिल्ली में 81.64 तथा चण्डीगढ़ में 61.06 है।
यदि हम सम्पूर्ण प्रयोक्ताओं की संख्या की दृष्टि से बात करें जिसमें मातृभाषा वक्ता (First Language Speakers) तथा द्वितीयभाषा वक्ता(Second Language Speakers) दोनो हों तो हिन्दी भाषियों की संख्या लगभग एक हजार मिलियन (सौ करोड़) है। द लिंग्वास्फीयर रजिस्टर ऑफ द वर्ल्डस् लैंग्वैजिज एण्ड स्पीच कम्युनिटीज. शीर्षक ग्रन्थ (The Linguasphere Register of the World's Languages and Speech Communities) में इस दृष्टि से हिन्दी भाषियों की संख्या 960 मिलियन मानी गई है ।
सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1991 के सैन्सस आफ इण्डिया का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ जुलाई, 1997 में प्रकाशित हुआ (दे. Census of India 1991 Series 1 - India Part I of 1997, Language : India and states - Table C - 7) यूनेस्को की टेक्नीकल कमेटी फॉर द वर्ल्ड लैंग्वेजिज रिपोर्ट ने अपने दिनांक 13 जुलाई, 1998 के पत्र के द्वारा यूनेस्को-प्रश्नावली के आधार पर हिन्दी की रिपोर्ट भेजने के लिए भारत सरकार से निवेदन किया। भारत सरकार ने उक्त दायित्व के निर्वाह के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन को पत्र लिखा। प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने दिनांक 25 मई,1999 को यूनेस्को को अपनी विस्तृत रिपोर्ट भेजी।
प्रोफेसर जैन ने विभिन्न भाषाओं के प्रामाणिक आँकड़ों एवं तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध किया कि प्रयोक्ताओं की दृष्टि से विश्व में चीनी भाषा के बाद दूसरा स्थान हिन्दी भाषा का है। रिपोर्ट तैयार करते समय प्रोफेसर जैन ने ब्रिटिश काउन्सिल आफ इण्डिया से अँगरेज़ी मातृभाषियों की पूरे विश्व की जनसंख्या के बारे में तथ्यात्मक रिपोर्ट भेजने के लिए निवेदन किया। ब्रिटिश काउन्सिल ऑफ इण्डिया ने इसके उत्तर में गिनीज बुक आफ नालेज (1997 संस्करण, पृष्ठ-57) फैक्स द्वारा भेजा। ब्रिटिश काउन्सिल द्वारा भेजी गई सूचना के अनुसार पूरे विश्व में अँगरेज़ी मातृभाषियों की संख्या 33,70,00,000 (33 करोड़, 70 लाख) है। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की पूरी आबादी 83,85,83,988 है। मातृभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने वालों की संख्या 33,72,72,114 है तथा उर्दू को मातृभाषा के रूप में स्वीकार करने वालों की संख्या का योग 04,34,06,932 है। हिन्दी एवं उर्दू को मातृभाषा के रूप में स्वीकार करने वालों की संख्या का योग 38,06,79,046 है जो भारत की पूरी आबादी का 44.98 प्रतिशत है। प्रोफेसर जैन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिद्ध किया कि भाषिक दृष्टि से हिन्दी और उर्दू में कोई अंतर नहीं है। इस प्रकार ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि सभी देशों के अँगरेज़ी मातृभाषियों की संख्या के योग से अधिक जनसंख्या केवल भारत में हिन्दी एवं उर्दू भाषियों की है। रिपोर्ट में यह भी प्रतिपादित किया गया कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक कारणों से सम्पूर्ण भारत में मानक हिन्दी के व्यावहारिक रूप का प्रसार बहुत अधिक है। हिन्दीतर भाषी राज्यों में बहुसंख्यक द्विभाषिक-समुदाय द्वितीय भाषा के रूप में अन्य किसी भाषा की अपेक्षा हिन्दी का अधिक प्रयोग करता है जो हिन्दी के सार्वदेशिक व्यवहार का प्रमाण है। भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा पाकिस्तान की राज्यभाषा उर्दू है। इस कारण हिन्दी-उर्दू भारत एवं पाकिस्तान में संपर्क भाषा के रूप में व्यवहृत है।
विश्व के लगभग 93 देशों में हिन्दी का या तो जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग होता है अथवा उन देशों में हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की सम्यक् व्यवस्था है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु हिन्दी बोलने वालों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है। विश्व के इन 93 देशों को हम तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं -
( I ) इस वर्ग के देशों में भारतीय मूल के आप्रवासी नागरिकों की आबादी देश की जनसंख्या में लगभग 40 प्रतिशत या उससे अधिक है। इन अधिकांश देशों में सरकारी एवं गैर-सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में हिन्दी का शिक्षण होता है। इन देशों के अधिकांश भारतीय मूल के आप्रवासी जीवन के विविध क्षेत्रों में हिन्दी का प्रयोग करते हैं एवं अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक के रूप में हिन्दी को ग्रहण करते हैं। इन देशों में निम्नलिखित देश उल्लेखनीय हैं- 1.मारीशस 2. फिजी 3. सूरीनाम 4. गयाना 5. त्रिनिडाड एण्ड टुबेगो। त्रिनिडाड के अतिरिक्त अन्य सभी देशों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग एवं व्यवहार होता है।
( II ) इस वर्ग के देशों में ऐसे निवासी रहते हैं जो हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में सीखते हैं, पढ़ते हैं तथा हिन्दी में लिखते हैं। इन देशों की विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में प्राय: स्नातक एवं/अथवा स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी की शिक्षा का प्रबन्ध है। कुछ देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी में शोध कार्य करने तथा डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने की भी व्यवस्था है। इन देशों में निम्नलिखित देशों के नाम उल्लेखनीय हैं -
महाद्वीप - देश
(क) अमेरिका महाद्वीप: 6. संयुक्त राज्य अमेरिका 7. कनाडा 8. मैक्सिको 9. क्यूबा
(ख) यूरोप महाद्वीप: 10. रूस 11. ब्रिटेन (इंग्लैण्ड) 12. जर्मनी 13. फ्रांस 14. बेल्जियम 15. हालैण्ड (नीदरलैण्ड्स) 16. आस्ट्रिया17. स्विटजरलैण्ड 18. डेनमार्क 19. नार्वे 20. स्वीडन 21. फिनलैंड 22. इटली 23. पौलैंड 24. चेक 25. हंगरी 26. रोमानिया 27. बल्गारिया 28. उक्रैन 29. क्रोएशिया
(ग ) अफ्रीका महाद्वीप : 30. दक्षिण अफ्रीका 31. री-यूनियन द्वीप
(घ) एशिया महाद्वीप : 32. पाकिस्तान 33. बंग्लादेश 34. श्रीलंका 35. नेपाल 36. भूटान 37. म्यंमार (बर्मा) 38. चीन 39. जापान 40. दक्षिण कोरिया 41. मंगोलिया 42. उजबेकिस्तान 43. ताजिकस्तान 44. तुर्की 45. थाइलैण्ड
(ड. ) आस्ट्रेलिया : 46. आस्ट्रेलिया
( III ) इसका उल्लेख किया जा चुका है कि भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा पाकिस्तान की राज्यभाषा उर्दू है। इस कारण हिन्दी-उर्दू भारत एवं पाकिस्तान में संपर्क भाषा के रूप में व्यवहृत है। भारत एवं पाकिस्तान के अलावा हिन्दी एवं उर्दू मातृभाषियों की बहुत बड़ी संख्या विश्व के लगभग 60 देशों में निवास करती है। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश, भूटान, नेपाल आदि देशों के आप्रवासियों/अनिवासियों की विपुल आबादी रहती है। इन देशों की यह आबादी सम्पर्क-भाषा के रूप में 'हिन्दी-उर्दू' का प्रयोग करती है, हिन्दी की फिल्में देखती है; हिन्दी के गाने सुनती है तथा टेलीविजन पर हिन्दी के कार्यक्रम देखती है। इन देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, ब्रिटेन (इंग्लैण्ड), जर्मनी, फ्रांस, हालैण्ड (नीदरलैण्ड्स), दक्षिण-अफ्रीका, दक्षिण-कोरिया, उजबेकिस्तान, ताजिकस्तान, थाइलैण्ड, आस्ट्रेलिया आदि देशों के अलावा निम्नलिखित देशों के नाम उल्लेखनीय हैं:- 47. अफगानिस्तान 48.अर्जेन्टीना 49.अल्जीरिया 50.इक्वेडोर 51 इण्डोनेशिया 52.इराक 53.ईरान 54.उगांडा 55.ओमान 56. कजाकिस्तान 57.क़तर 58.कुवैत 59.केन्या 60.कोट डी'इवोइरे 61.ग्वाटेमाला 62.जमाइका 63.जाम्बिया 64.तंजानिया 65.नाइजीरिया 66.निकारागुआ 67.न्यूजीलैण्ड 68.पनामा 69. पुर्तगाल 70.पेरु 71.पैरागुवै 72.फिलिपाइन्स 73.बहरीन 74. ब्राजील 75.ब्रुनेई 76.मलेशिया 77.मिस्र 78.मेडागास्कर 79. मोजाम्बिक 80.मोरक्को 81.मौरिटानिया 82.यमन 83.लीबिया 84. लेबनान 85. वेनेजुएला 86. सऊदी अरब 87. संयुक्त अरब अमीरात 88. सिंगापुर 89. सूडान 90. सेशेल्स 91. स्पेन 92. हांगकांग (चीन) 93 होंडूरास
हिन्दी की फिल्मों, हिन्दी के गानों तथा टी.वी. कार्यक्रमों का प्रसार :
हिन्दी की फिल्मों, गानों, टी.वी. कार्यक्रमों ने हिन्दी को कितना लोकप्रिय बनाया है - इसका आकलन करना कठिन है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में हिन्दी पढ़ने के लिए आने वाले 67 देशों के विदेशी छात्रों ने इसकी पुष्टि की कि हिन्दी फिल्मों को देखकर तथा हिन्दी फिल्मी गानों को सुनकर उन्हें हिन्दी सीखने में मदद मिली। लेखक ने स्वयं जिन देशों की यात्रा की तथा जितने विदेशी नागरिकों से बातचीत की उनसे भी जो अनुभव हुआ उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिन्दी की फिल्मों तथा फिल्मी गानों ने हिन्दी के प्रसार में अप्रतिम योगदान दिया है। सन् 1995 के बाद से टी.वी. के चैनलों से प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता भी बढ़ी है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जिन सेटेलाईट चैनलों ने भारत में अपने कार्यक्रमों का आरम्भ केवल अँगरेज़ी भाषा से किया था; उन्हें अपनी भाषा नीति में परिवर्तन करना पड़ा है। अब स्टार प्लस, जी.टी.वी., जी न्यूज, स्टार न्यूज, डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिक आदि टी.वी. चैनल अपने कार्यक्रम हिन्दी में दे रहे हैं। दक्षिण पूर्व एशिया तथा खाड़ी के देशों के कितने दर्शक इन कार्यक्रमों को देखते हैं - यह अनुसन्धान का अच्छा विषय है।
उपयुर्क्त विवेचन के बाद देश के चिन्तक स्वयं विचार करें कि नामवर सिंह ने हिन्दी को उसके अपने ही घ्ार में तोड़ने का, उसके टुकड़े-टुकडे करने का जो आत्मघाती वक्तव्य दिया है वह स्वीकार्य है अथवा हिन्दी अपने भाषा क्ष्ोत्र में बोले जाने वाले समस्त भाषा रूपों की समष्टि का बोध्ाक है, विद्यापति, सूरदास, तुलसीदास आदि कवि हिन्दी साहित्य की अमूल्य संपदा है, हिन्दी उसी प्रकार विस्तृत एवं विशाल क्ष्ोत्र की भाषा है जिस प्रकार चीनी एवं रूसी भाषाएँ हैं तथा यह कि हिन्दी भाषा चीनी भाषा के बाद संसार में दूसरे नम्बर की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
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प्रोफेसर महावीर सरन जैन(सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान) 123, हरिएन्कलेव, चांदपुर रोड, बुलन्दशहर - 203001
आजकल देश के चिन्तक हिन्दी के अर्थ को लेकर सशंकित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति तथा हिन्दी के तथाकथित नामचीन आलोचक नामवर सिंह ने बैंगलुरु में आयोजित भारतीय भाषाओं का कुंभ सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए यह कहकर कि उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे राज्यों की भाषा भी हिन्दी नहीं है। वहाँ की क्षेत्रीय भाषाएँ यथा अवधी, भोजपुरी, मैथिल आदि हैं - सनसनी फैला दी है।
लंदन में 14 से 18 सितम्बर,1999 की अवधि में आयोजित छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिभागियों के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की ओर से भेंट देने के लिए हमने “ विश्व भाषा हिन्दी” शीर्षक पुस्तक प्रकाशित करायी थी जिसके आमुख में लेखक ने लिखा थाः
हिन्दी भाषा की अर्थवेत्ता, हिन्दी-उर्दू का सम्बन्ध, हिन्दी भाषा क्षेत्र तथा हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र आदि बिंदुओं को लेकर न केवल सामान्य व्यक्ति के मन में बहुत सी भ्रान्त धारणाएँ बनी हुई हैं बल्कि हिन्दी भाषा के कतिपय विद्वानों, आलोचकों तथा अध्येताओं का मन भी तत्संबंधित भ्रान्तियों से मुक्त नहीं है।
उपर्युक्त आमुख लिखते समय लेखक ने यह नहीं सोचा था कि ‘ हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योगदान’ जैसे ग्रन्थ के लेखक की बुद्धि भी इतनी भ्रमित हो सकती है। लेखक अभी भी यह निष्कर्ष निकालने में असमर्थ है कि नामवर सिंह ने जो वक्तव्य दिया है, वह भाषा विज्ञान सम्बंधी ज्ञान न होने के कारण है अथवा उनकी दलगत राजनीति के पूर्वाग्रह मतान्ध स्वार्थों से ग्रसित होने के कारण है।
संसार में ऐसा कोई भाषा क्षेत्र नहीं होता, जिसमें क्षेत्रगत भेद नहीं होते। कहावत है - चार कोस पर बदले पानी, आठ कोस पर बानी। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या 700-800 मिलियन (70 करोड़ से 80 करोड़) है तथा उसका भाषा क्षेत्र हिन्दी भाषा क्षेत्र की अपेक्षा बहुत विस्तृत है। चीनी भाषी क्षेत्र में जो भाषिक रूप बोले जाते हैं वे सभी परस्पर बोधगम्य नहीं हैं। जब पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक चीनी भाषा की विवेचना करते हैं तो किसी प्रकार का विवाद पैदा नहीं करते किन्तु नामवर सिंह जैसे विद्वान जब हिन्दी भाषा की विवेचना करते हैं तो हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत बोले जाने वाले हिन्दी भाषा के उपभाषा रूपों को भाषा का दर्जा दे देते हैं। हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत भारत के निम्नलिखित राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश समाहित हैं :-1. उत्तर प्रदेश 2. उत्तराखंड 3. बिहार 4. झारखण्ड 5. मध्य प्रदेश 6. छत्तीसगढ़ 7. राजस्थान 8. हिमाचल प्रदेश 9. हरियाणा 10. दिल्ली 11. चण्डीगढ़।
हिन्दी भाषा क्षेत्र में हिन्दी की मुख्यत: 20 बोलियाँ अथवा उपभाषाएँ बोली जाती हैं। इन 20 बोलियों अथवा उपभाषाओं को ऐतिहासिक परम्परा से पाँच वर्गों में विभक्त किया जाता है पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी , राजस्थानी हिन्दी, पहाड़ी हिन्दी और बिहारी हिन्दी।
1- पश्चिमी हिंदी – 1. खड़ी बोली 2 ब्रजभाषा 3. हरियाणवी 4. बुंदेली 5. कन्नौजी
2- पूर्वी हिंदी – 1. अवधी 2. बघेली 3. छत्तीसगढ़ी
3- राजस्थानी- 1. मारवाड़ी 2. जयपुरी 3. मेवाती 4. मालवी
4- पहाड़ी – 1. पूर्वी पहाड़ी 2.मध्यवर्ती पहाड़ी जिसमें कुमाऊंनी और गढ़वाली आती है 3. पश्चिमी पहाड़ी जिसमें हिमाचल प्रदेश की अनेक बोलियां आती हैं।
5- बिहारी भाषा – 1. मैथिली 2. भोजपुरी 3. मगही 4. अंगिका 5. बज्जिका
हिन्दी भाषा का क्षेत्र बहुत व्यापक है। हिन्दी भाषा क्षेत्र में ऐसी बहुत सी उपभाषाएँ हैं जिनमें पारस्परिक बोधगम्यता का प्रतिशत कम है किन्तु ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सम्पूर्ण भाषा क्षेत्र एक भाषिक इकाई है तथा इस भाषा-भाषी क्षेत्र के बहुमत भाषा-भाषी अपने-अपने क्षेत्रगत भेदों को हिन्दी भाषा के रूप में मानते एवं स्वीकारते आए हैं। भारत के संविधान की दृष्टि से यही स्थिति है। सन् 1997 में भारत सरकार के सैन्सस ऑफ इण्डिया द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में भी यही स्थिति है।
‘खड़ी बोली' हिन्दी भाषा क्षेत्र का उसी प्रकार एक भेद है, जिस प्रकार हिन्दी भाषा के अन्य बहुत से क्षेत्रगत भेद हैं। प्रत्येक भाषा क्षेत्र में अनेक क्षेत्रगत, वर्गगत एवं शैलीगत भिन्नताएँ होती हैं। प्रत्येक भाषा क्षेत्र में किसी क्षेत्र विशेष के भाषिक रूप के आधार पर उस भाषा का मानक रूप विकसित होता है, जिसका उस भाषा-क्षेत्र के सभी क्षेत्रों के पढ़े-लिखे व्यक्ति औपचारिक अवसरों पर प्रयोग करते हैं। पूरे भाषा क्षेत्र में इसका व्यवहार होने तथा इसके प्रकार्यात्मक प्रचार-प्रसार के कारण विकसित भाषा का मानक रूप भाषा क्षेत्र के समस्त भाषिक रूपों के बीच संपर्क सेतु का काम करता है तथा कभी-कभी इसी मानक भाषा रूप के आधार पर उस भाषा की पहचान की जाती है।
जिस प्रकार भारत अपने 28 राज्यों एवं 07 केन्द्र शासित प्रदेशों को मिलाकर भारतदेश है, उसी प्रकार भारत के जिन राज्यों एवं शासित प्रदेशों को मिलाकर हिन्दी भाषा क्षेत्र है, उस हिन्दी भाषा-क्षेत्र के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उनकी समष्टि का नाम हिन्दी भाषा है। हिन्दी भाषा क्षेत्र के प्रत्येक भाग में व्यक्ति स्थानीय स्तर पर क्षेत्रीय भाषा रूप में बात करता है। औपचारिक अवसरों पर तथा अन्तर-क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं सार्वदेशिक स्तरों पर भाषा के मानक रूप अथवा व्यावहारिक हिन्दी का प्रयोग होता है। आप विचार करे कि उत्तर प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है अथवा खड़ी बोली, ब्रजभाषा, कन्नौजी, अवधी, बुन्देली आदि भाषाओं का राज्य है। मध्य प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है अथवा बुन्देली, बघेली, मालवी, निमाड़ी आदि भाषाओं का राज्य है। राजस्थान हिन्दी भाषी राज्य है अथवा मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती आदि भाषाओं का राज्य है। प्रत्येक देश की एक राजधानी होती है तथा विदेशों में किसी देश की राजधानी के नाम से प्रायः देश का बोध होता है, किन्तु सहज रूप से समझ में आने वाली बात है कि राजधानी ही देश नहीं होता।
विदेश सेवा में कार्यरत अधिकारी जानते हैं कि कभी देश के नाम से तथा कभी उस देश की राजधानी के नाम से देश की चर्चा होती है। वे ये भी जानते हैं कि देश की राजधानी के नाम से देश की चर्चा भले ही होती है, मगर राजधानी ही देश नहीं होता। इसी प्रकार किसी भाषा के मानक रूप के आधार पर उस भाषा की पहचान की जाती है मगर मानक भाषा, भाषा का एक रूप होता है : मानक भाषा ही भाषा नहीं होती। इसी प्रकार खड़ी बोली के आधार पर मानक हिन्दी का विकास अवश्य हुआ है किन्तु खड़ी बोली ही हिन्दी नहीं है। तत्वतः हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उन सबकी समष्टि का नाम हिन्दी है। हिन्दी को उसके अपने ही घर में तोड़ने का षडयंत्र अब विफल हो गया है क्योंकि 1991 की भारतीय जनगणना के अंतर्गत जो भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है उसमें मातृभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने वालों की संख्या का प्रतिशत उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड राज्य सहित) में 90.11, बिहार (झारखण्ड राज्य सहित) में 80.86, मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ राज्य सहित) में 85.55, राजस्थान में 89.56, हिमाचल प्रदेश में 88.88, हरियाणा में 91.00, दिल्ली में 81.64 तथा चण्डीगढ़ में 61.06 है।
यदि हम सम्पूर्ण प्रयोक्ताओं की संख्या की दृष्टि से बात करें जिसमें मातृभाषा वक्ता (First Language Speakers) तथा द्वितीयभाषा वक्ता(Second Language Speakers) दोनो हों तो हिन्दी भाषियों की संख्या लगभग एक हजार मिलियन (सौ करोड़) है। द लिंग्वास्फीयर रजिस्टर ऑफ द वर्ल्डस् लैंग्वैजिज एण्ड स्पीच कम्युनिटीज. शीर्षक ग्रन्थ (The Linguasphere Register of the World's Languages and Speech Communities) में इस दृष्टि से हिन्दी भाषियों की संख्या 960 मिलियन मानी गई है ।
सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1991 के सैन्सस आफ इण्डिया का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ जुलाई, 1997 में प्रकाशित हुआ (दे. Census of India 1991 Series 1 - India Part I of 1997, Language : India and states - Table C - 7) यूनेस्को की टेक्नीकल कमेटी फॉर द वर्ल्ड लैंग्वेजिज रिपोर्ट ने अपने दिनांक 13 जुलाई, 1998 के पत्र के द्वारा यूनेस्को-प्रश्नावली के आधार पर हिन्दी की रिपोर्ट भेजने के लिए भारत सरकार से निवेदन किया। भारत सरकार ने उक्त दायित्व के निर्वाह के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन को पत्र लिखा। प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने दिनांक 25 मई,1999 को यूनेस्को को अपनी विस्तृत रिपोर्ट भेजी।
प्रोफेसर जैन ने विभिन्न भाषाओं के प्रामाणिक आँकड़ों एवं तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध किया कि प्रयोक्ताओं की दृष्टि से विश्व में चीनी भाषा के बाद दूसरा स्थान हिन्दी भाषा का है। रिपोर्ट तैयार करते समय प्रोफेसर जैन ने ब्रिटिश काउन्सिल आफ इण्डिया से अँगरेज़ी मातृभाषियों की पूरे विश्व की जनसंख्या के बारे में तथ्यात्मक रिपोर्ट भेजने के लिए निवेदन किया। ब्रिटिश काउन्सिल ऑफ इण्डिया ने इसके उत्तर में गिनीज बुक आफ नालेज (1997 संस्करण, पृष्ठ-57) फैक्स द्वारा भेजा। ब्रिटिश काउन्सिल द्वारा भेजी गई सूचना के अनुसार पूरे विश्व में अँगरेज़ी मातृभाषियों की संख्या 33,70,00,000 (33 करोड़, 70 लाख) है। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की पूरी आबादी 83,85,83,988 है। मातृभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने वालों की संख्या 33,72,72,114 है तथा उर्दू को मातृभाषा के रूप में स्वीकार करने वालों की संख्या का योग 04,34,06,932 है। हिन्दी एवं उर्दू को मातृभाषा के रूप में स्वीकार करने वालों की संख्या का योग 38,06,79,046 है जो भारत की पूरी आबादी का 44.98 प्रतिशत है। प्रोफेसर जैन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिद्ध किया कि भाषिक दृष्टि से हिन्दी और उर्दू में कोई अंतर नहीं है। इस प्रकार ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि सभी देशों के अँगरेज़ी मातृभाषियों की संख्या के योग से अधिक जनसंख्या केवल भारत में हिन्दी एवं उर्दू भाषियों की है। रिपोर्ट में यह भी प्रतिपादित किया गया कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक कारणों से सम्पूर्ण भारत में मानक हिन्दी के व्यावहारिक रूप का प्रसार बहुत अधिक है। हिन्दीतर भाषी राज्यों में बहुसंख्यक द्विभाषिक-समुदाय द्वितीय भाषा के रूप में अन्य किसी भाषा की अपेक्षा हिन्दी का अधिक प्रयोग करता है जो हिन्दी के सार्वदेशिक व्यवहार का प्रमाण है। भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा पाकिस्तान की राज्यभाषा उर्दू है। इस कारण हिन्दी-उर्दू भारत एवं पाकिस्तान में संपर्क भाषा के रूप में व्यवहृत है।
विश्व के लगभग 93 देशों में हिन्दी का या तो जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग होता है अथवा उन देशों में हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की सम्यक् व्यवस्था है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु हिन्दी बोलने वालों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है। विश्व के इन 93 देशों को हम तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं -
( I ) इस वर्ग के देशों में भारतीय मूल के आप्रवासी नागरिकों की आबादी देश की जनसंख्या में लगभग 40 प्रतिशत या उससे अधिक है। इन अधिकांश देशों में सरकारी एवं गैर-सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में हिन्दी का शिक्षण होता है। इन देशों के अधिकांश भारतीय मूल के आप्रवासी जीवन के विविध क्षेत्रों में हिन्दी का प्रयोग करते हैं एवं अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक के रूप में हिन्दी को ग्रहण करते हैं। इन देशों में निम्नलिखित देश उल्लेखनीय हैं- 1.मारीशस 2. फिजी 3. सूरीनाम 4. गयाना 5. त्रिनिडाड एण्ड टुबेगो। त्रिनिडाड के अतिरिक्त अन्य सभी देशों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग एवं व्यवहार होता है।
( II ) इस वर्ग के देशों में ऐसे निवासी रहते हैं जो हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में सीखते हैं, पढ़ते हैं तथा हिन्दी में लिखते हैं। इन देशों की विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में प्राय: स्नातक एवं/अथवा स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी की शिक्षा का प्रबन्ध है। कुछ देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी में शोध कार्य करने तथा डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने की भी व्यवस्था है। इन देशों में निम्नलिखित देशों के नाम उल्लेखनीय हैं -
महाद्वीप - देश
(क) अमेरिका महाद्वीप: 6. संयुक्त राज्य अमेरिका 7. कनाडा 8. मैक्सिको 9. क्यूबा
(ख) यूरोप महाद्वीप: 10. रूस 11. ब्रिटेन (इंग्लैण्ड) 12. जर्मनी 13. फ्रांस 14. बेल्जियम 15. हालैण्ड (नीदरलैण्ड्स) 16. आस्ट्रिया17. स्विटजरलैण्ड 18. डेनमार्क 19. नार्वे 20. स्वीडन 21. फिनलैंड 22. इटली 23. पौलैंड 24. चेक 25. हंगरी 26. रोमानिया 27. बल्गारिया 28. उक्रैन 29. क्रोएशिया
(ग ) अफ्रीका महाद्वीप : 30. दक्षिण अफ्रीका 31. री-यूनियन द्वीप
(घ) एशिया महाद्वीप : 32. पाकिस्तान 33. बंग्लादेश 34. श्रीलंका 35. नेपाल 36. भूटान 37. म्यंमार (बर्मा) 38. चीन 39. जापान 40. दक्षिण कोरिया 41. मंगोलिया 42. उजबेकिस्तान 43. ताजिकस्तान 44. तुर्की 45. थाइलैण्ड
(ड. ) आस्ट्रेलिया : 46. आस्ट्रेलिया
( III ) इसका उल्लेख किया जा चुका है कि भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा पाकिस्तान की राज्यभाषा उर्दू है। इस कारण हिन्दी-उर्दू भारत एवं पाकिस्तान में संपर्क भाषा के रूप में व्यवहृत है। भारत एवं पाकिस्तान के अलावा हिन्दी एवं उर्दू मातृभाषियों की बहुत बड़ी संख्या विश्व के लगभग 60 देशों में निवास करती है। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश, भूटान, नेपाल आदि देशों के आप्रवासियों/अनिवासियों की विपुल आबादी रहती है। इन देशों की यह आबादी सम्पर्क-भाषा के रूप में 'हिन्दी-उर्दू' का प्रयोग करती है, हिन्दी की फिल्में देखती है; हिन्दी के गाने सुनती है तथा टेलीविजन पर हिन्दी के कार्यक्रम देखती है। इन देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, ब्रिटेन (इंग्लैण्ड), जर्मनी, फ्रांस, हालैण्ड (नीदरलैण्ड्स), दक्षिण-अफ्रीका, दक्षिण-कोरिया, उजबेकिस्तान, ताजिकस्तान, थाइलैण्ड, आस्ट्रेलिया आदि देशों के अलावा निम्नलिखित देशों के नाम उल्लेखनीय हैं:- 47. अफगानिस्तान 48.अर्जेन्टीना 49.अल्जीरिया 50.इक्वेडोर 51 इण्डोनेशिया 52.इराक 53.ईरान 54.उगांडा 55.ओमान 56. कजाकिस्तान 57.क़तर 58.कुवैत 59.केन्या 60.कोट डी'इवोइरे 61.ग्वाटेमाला 62.जमाइका 63.जाम्बिया 64.तंजानिया 65.नाइजीरिया 66.निकारागुआ 67.न्यूजीलैण्ड 68.पनामा 69. पुर्तगाल 70.पेरु 71.पैरागुवै 72.फिलिपाइन्स 73.बहरीन 74. ब्राजील 75.ब्रुनेई 76.मलेशिया 77.मिस्र 78.मेडागास्कर 79. मोजाम्बिक 80.मोरक्को 81.मौरिटानिया 82.यमन 83.लीबिया 84. लेबनान 85. वेनेजुएला 86. सऊदी अरब 87. संयुक्त अरब अमीरात 88. सिंगापुर 89. सूडान 90. सेशेल्स 91. स्पेन 92. हांगकांग (चीन) 93 होंडूरास
हिन्दी की फिल्मों, हिन्दी के गानों तथा टी.वी. कार्यक्रमों का प्रसार :
हिन्दी की फिल्मों, गानों, टी.वी. कार्यक्रमों ने हिन्दी को कितना लोकप्रिय बनाया है - इसका आकलन करना कठिन है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में हिन्दी पढ़ने के लिए आने वाले 67 देशों के विदेशी छात्रों ने इसकी पुष्टि की कि हिन्दी फिल्मों को देखकर तथा हिन्दी फिल्मी गानों को सुनकर उन्हें हिन्दी सीखने में मदद मिली। लेखक ने स्वयं जिन देशों की यात्रा की तथा जितने विदेशी नागरिकों से बातचीत की उनसे भी जो अनुभव हुआ उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिन्दी की फिल्मों तथा फिल्मी गानों ने हिन्दी के प्रसार में अप्रतिम योगदान दिया है। सन् 1995 के बाद से टी.वी. के चैनलों से प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता भी बढ़ी है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जिन सेटेलाईट चैनलों ने भारत में अपने कार्यक्रमों का आरम्भ केवल अँगरेज़ी भाषा से किया था; उन्हें अपनी भाषा नीति में परिवर्तन करना पड़ा है। अब स्टार प्लस, जी.टी.वी., जी न्यूज, स्टार न्यूज, डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिक आदि टी.वी. चैनल अपने कार्यक्रम हिन्दी में दे रहे हैं। दक्षिण पूर्व एशिया तथा खाड़ी के देशों के कितने दर्शक इन कार्यक्रमों को देखते हैं - यह अनुसन्धान का अच्छा विषय है।
उपयुर्क्त विवेचन के बाद देश के चिन्तक स्वयं विचार करें कि नामवर सिंह ने हिन्दी को उसके अपने ही घ्ार में तोड़ने का, उसके टुकड़े-टुकडे करने का जो आत्मघाती वक्तव्य दिया है वह स्वीकार्य है अथवा हिन्दी अपने भाषा क्ष्ोत्र में बोले जाने वाले समस्त भाषा रूपों की समष्टि का बोध्ाक है, विद्यापति, सूरदास, तुलसीदास आदि कवि हिन्दी साहित्य की अमूल्य संपदा है, हिन्दी उसी प्रकार विस्तृत एवं विशाल क्ष्ोत्र की भाषा है जिस प्रकार चीनी एवं रूसी भाषाएँ हैं तथा यह कि हिन्दी भाषा चीनी भाषा के बाद संसार में दूसरे नम्बर की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
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प्रोफेसर महावीर सरन जैन(सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान) 123, हरिएन्कलेव, चांदपुर रोड, बुलन्दशहर - 203001
आगे पढ़ें: रचनाकार: महावीर सरन जैन का आलेख : क्या उत्तर प्रदेश एवं बिहार हिन्दी भाषी राज्य नहीं हैं? http://www.rachanakar.org/2009/09/blog-post_08.html#ixzz2VokhtofG
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