22 जुलाई 2013

भारत में आधुनिकता




                             भारत में आधुनिकता 

झभारत में आधुनिकता के उदय का श्रेय जिन मनीषियों को जाता है उनमें राजा राम मोहन राय और स्वामी विवेकानन्द के नामों का अधिक उल्लेख होता है। भारत में आधुनिकता के विचारों को पल्लवित करने वाले जो भी महापुरुष हुए वे सब बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे, समाजसेवी एवं चिंतक थे, सबने भारतीय ग्रंथों के साथ-साथ पाश्चात्य ग्रंथों का भी अध्ययन किया था।

राजा राम मोहन राय ने सदियों से रूढ़ियों से जकड़े भारतीय समाज की सोच बदलने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए। राजा राम मोहन राय जहाँ एक ओर संस्कृत, बांग्ला, हिन्दी के विद्वान थे वहीं अंग्रेजी, ग्रीक और फारसी में भी निष्णात थे। उन्होंने  हिन्दू समाज में प्रचलित अमानवीय सति प्रथा को समाप्त कराकर ही दम लिया। उन्होंने अन्य अनेक रूढ़िवादी एवं जड़ राति-रिवाजों का विरोध किया। वेदों और उपनिषदों का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले राजा राम मोहन राय मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे। अपने इन विचारों और समाज सुधार आन्दोलनों के कारण उन्हें कट्टर हिन्दुत्ववादियों के चरम विरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें वोट बटोरने की चिंता न थी। इस कारण वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। कट्टर हिन्दुवादी समाज के चरम विरोध के कारण उनको सन् 1828 में “ब्रह्म समाज” की स्थापना करनी पड़ी।

आजकल नरेंद्र मोदी स्वामी विवेकानन्द के नाम का जाप बहुत कर रहे हैं। मैं विवेकानन्द के सम्बंध में इस तथ्य को रेखांकित करना चाहता हूँ कि  रामकृष्ण के सम्पर्क में आने के पहले स्वामी विवेकानन्द ने एक ओर  वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत, विभिन्न पुराणों आदि हिन्दू धर्म- ग्रंथों का गहन अध्ययन किया तो दूसरी ओर तथ्यवाद एवं समाजशास्त्र के  विचारक आगस्त कॉन्त, उत्पत्ति की सर्वसमावेशक अवधारणा के व्याख्याता  हरबर्ट स्पेंसर, व्यक्तिगत स्वातंत्र्य की शक्ति एवं उसकी सीमा के मीमांसक  जॉन स्टूवर्ट मिल, विकासवाद के सिद्धांत के प्रख्यात जनक चार्ल्स डॉरविन, नैतिक शुद्धता के सिद्धांत के विवेचक जर्मन दार्शनिक इमानुएल कॉट, नव्य-कांटवाद एवं आदर्शवाद के जर्मन-दार्शनिक गॉतिब फिश्ते, अनुभव आधारित वास्तविक ज्ञान-प्राप्ति के समर्थक स्काटलैण्ड के दार्शनिक डेविड ह्यूम, नास्तिक निराशावाद के दर्शन के प्रतिपादक जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेनहॉवर, हेगेलीय दर्शन अथवा निरपेक्ष आदर्शवाद के प्रणेता जॉर्ज विल्हेम फ्रेडरिच हेगल तथा सर्वधर्म निरपेक्षवाद के प्रवर्तक यहूदी मूल के डच दार्शनिक बारूथ स्पिनोज़ा आदि विभिन्न पाश्चात्य दार्शनिकों एवं मनीषियों के ग्रंथों का भी पारायण किया। स्पेंसर के विचारों से वे प्रभावित हुए थे। इसका प्रमाण उनका स्पेंसर से किया गया पत्राचार है। पाश्चात्य दर्शन एवं उसकी वैज्ञानिक दृष्टि के वे प्रबल समर्थक थे तथा भारत की युवा-शक्ति को उन्होंने विषय की विवेचना-पद्धति में इसे अपनाने का आग्रह किया। सत्य के उपासक की दृष्टि उन्मुक्त होती है। अगर कहीं भी अच्छी बात है तो उसको समझने एवं ग्रहण करने का यत्न करना चाहिए। अपनी फरवरी से मार्च 1981 की यात्रा के दौरान अलवर में उन्हें भारतीय इतिहास की विवेचना पद्धति में वैज्ञानिक दृष्टि की कमी का अहसास हुआ तथा उन्होंने भारत के युवाओं को पाश्चात्य वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने का आग्रह किया। उनका मत था कि इसके ज्ञान से भारत में युवा हिन्दू इतिहासकारों का ऐसा संगठन तैयार हो सकेगा जो भारत के गौरवपूर्ण अतीत की वैज्ञानिक पद्धति से खोज करने में समर्थ सिद्ध होगा और इससे वास्तविक राष्ट्रीय भावना जागृत हो सकेगी। (देखेः रोमां रोलां : द लॉइफ ऑफ् विवेकानन्द एण्ड दॉ यूनिवर्सल गॉसपॅल, पृष्ठ 23-24, अद्वैत आश्रम (पब्लिशिंग डिपार्टमैण्ट) कलकत्ता- 700 014, पंद्रहवाँ संस्करण (1997))।

विवेकानन्द का महत्व अथवा उनका प्रदेय निम्न कारणों से सबसे अधिक हैः

(1) व्यावहारिक जीवन की समस्याओं का समाधान करना तथा समसामयिक दृष्टि से पराधीन भारत के सुषुप्त मानस में आत्म गौरव एवं आत्म विश्वास का मंत्र फूँककर उनको कर्म-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देना।

(2) मंदिर में विराजमान मूर्तियों की पूजा एवं उनको भोग चढ़ाने की अपेक्षा जीते-जागते इंसान की सेवा को महत्व प्रदान करना।

(3) सर्व धर्म समभाव का प्रतिपादन करना।

“आधुनिकता” केवल कुछ स्वर और व्यंजनों से निर्मित शब्द ही नहीं है, यह एक विचार प्रत्यय है। आधुनिकता का प्रत्यय उस विचार से शुरु होता है जो यह मानता है कि ईश्वर ने मनुष्य को निर्मित नहीं किया अपितु मनुष्य ने ही ईश्वर को अपनी आकृति में ढाला है। आधुनिकता व्यक्ति के अंध विश्वासों को दूर करती है तथा उसकी तर्क-शक्ति का विकास करती है। आधुनिकता को यदि समझना है तो आधुनिक मानव-परिवेश की प्रकृति और परिवर्तित जीवन-मूल्यों को आत्मसात करना होगा। यह मानना होगा कि मनुष्य ही सारे मूल्यों का स्रोत है। मनुष्य ही सारे मूल्यों का उपादान है। 

--- महावीर शरण जैन 
( बुलन्द शहर , उ प़ ) 
प्रवक्ता डाँट काम से साभार । 

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