रूसी कवि मायकोव्स्की की याद
19 जुलाई को बीसवीं शताब्दी के एक बहुत बड़े कवि व्लदीमिर मायकोवस्की की 120 वीं जयन्ती है। उनकी कविताओं में बिजली की तरह अथाह जोश भरा हुआ है। यह अलग बात है कि उनका यह जोश किन कारणों से और किन उद्देश्यों से अभिव्यक्त हुआ था।
कवि मायकोवस्की जब युवा थे तो परम्परा को नकारने वाले 'भविष्यवादी' युवा कवियों से जुड़ गए थे। वे न केवल 'भविष्यवादियों से जुड़ गए थे, बल्कि उन्होंने 'भविष्यवाद' का घोषणापत्र भी लिखा था, जिसका शीर्षक था -- 'सामाजिक रुचियों के मुँह पर तमाचा'। लेकिन जल्दी ही उनकी मान्यता बदल गई और वे क्लासिक कला के नियमों को नकारने और उन्हें नष्ट करने में विश्वास रखने वाले एक दूसरे गुट से जुड़ गए और फिर वे नई क्रान्ति की रचना करने वाले कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गए। वैसे सच-सच कहा जाए तो मायकोवस्की ने हर तरह की कविताएँ लिखी हैं और उनकी कविता में हमेशा जोश और उत्साह झलकता है। मायकोवस्की ने बेहद जटिल कविताएँ भी लिखी हैं और बेहद सहज और सरल कविताएँ भी. उनकी कविताओं में नूतनता और अधुनातनता भी झलकती है और कभी-कभी उनकी कविताएँ पोस्टर की तरह भी लगने लगती हैं, उन्होंने बड़ी गम्भीर और भावुक प्रेम कविताएँ भी लिखी हैं और अपनी कविता में गहरे व्यंग्य और कटाक्ष भी किए हैं।
आलोचक और साहित्यकार उनके रचनाकाल को अक्सर दो भागों में बाँट कर देखते हैं -- 1917 की महान समाजवादी क्रान्ति से पहले की रचनाएँ और क्रान्ति होने के बाद रची गई रचनाएँ। उनकी कविताओं के अध्येता आम तौर पर उनके जीवनकाल के इस दूसरे हिस्से में ज़्यादा रुचि दिखाते हैं, जिसका अन्त उनकी आत्महत्या से हुआ। रूसी साहित्य के एक अध्येता प्रोफ़ेसर अलेक्सान्दर उशाकोफ़ का कहना है कि मायकोवस्की की आरम्भिक कविताओं में रुचि नहीं दिखाई जाती, जबकि यह ठीक नहीं है। अलेक्सान्दर उशाकोफ़ ने कहा :
उनकी आरम्भिक कविताएँ पढ़कर हम महसूस करते हैं कि उन कविताओं में कुछ ऐसा है, जो इससे पहले रूसी कविता में कभी नहीं दिखाई दिया। इतनी भावुक, जोशीली और आत्मीय अभिव्यक्ति वाली कविताएँ विश्व साहित्य में, विश्व की संस्कृति में कभी सामने नहीं आई थीं। जहाँ तक उनके द्वारा की गई आत्महत्या की बात है तो वे क्रान्ति से पहले भी आत्महत्या करना चाहते थे और उनकी कविताओं में यह भावना, यह बात कई बार अभिव्यक्त हुई है। यदि उन्होंने तब आत्महत्या कर ली होती, तब ख़ुद को गोली मार ली होती, तब भी उन्हें रूसी कविता में उतना ही महान् और प्रतिभाशाली कवि माना गया होता, जितना आज माना जाता है।
बीसवीं शताब्दी के शुरु का वह समय, जब मायकोवस्की ने कविता में क़दम रखा था -- बड़ी तेज़ी से बदलते हुए यथार्थ का समय था। यह यथार्थ तब लोगों से एक ऐसा नया रूप, एक ऐसा नया जीवन चाहता था, जो पुराने जीवन की बहुत-सी मान्यताओं से एकदम भिन्न हो। प्रोफ़ेसर अलेक्सान्दर उशाकोफ़ ने कहा -- मायकोवस्की जैसे लोग ही उस नई कला की रचना कर सकते थे, जो इतिहास के उस महान दौर की माँग थी। अलेक्सान्दर उशाकोफ़ ने कहा :
मायकोवस्की एक ऐसे सर्जक थे, जिनकी रचनाओं में सम्पूर्णता की भावना अभिव्यक्त हुई है। उनके मानक बहुत उच्चस्तरीय मानक हैं। वे जीवन को पूरी तरह बदल देना चाहते हैं। जीवन में बहुत-कुछ ऐसा है, जो उन्हें बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। जीवन की नकारात्मकता, अश्लीलता और अपूर्णताओं को वे पूरी तरह से नकारते हैं। मनुष्य के दमन को वे अस्वीकार करते हैं। और क्रान्ति के बाद जब यह सम्भावना सामने आ गई कि जीवन में बदलाव किया जा सकता है, तो मायकोवस्की ने पूरी चेतना के साथ अपना जीवन क्रान्तिकारी विचारों को समर्पित कर दिया।
लेकिन क्रान्ति के बाद रूस में जीवन ने जो रूप ग्रहण कर लिया था, उसे देखकर भी वे जल्दी ही निराश हो गए। नौकरशाही, कूपमण्डूकता और ढिठाई जैसे चीज़ें उनके स्वभाव के पूरी तरह विपरीत थीं। तब उन्होंने ' खटमल' और 'हम्माम' जैसे व्यंग्यात्मक नाटक लिखे। लेकिन तत्कालीन सोवियत सत्ता ने उन नाटकों को सफ़ेद झूठ करार दिया, जैसे सोवियता सत्ता में ऐसा हो ही नहीं सकता। लेकिन फिर भी, मायकोवस्की की आत्महत्या के बाद भी सोवियत सत्ता ने उन्हें अपना प्रमुख लेखक माना। योसिफ़ स्तालिन ने उनके बारे में कहा था -- मायकोवस्की सोवियत सत्ता काल के सबसे प्रभावशाली और बेहतरीन कवि थे और आज भी उनसे बेहतर कोई नहीं है। अगर कोई उनकी रचनाओं में रुचि नहीं लेता, अगर कोई उन्हें याद नहीं करता, तो यह एक अपराध है।
मायकोवस्की को लम्बे समय तक सर्वहारा का कवि माना जाता रहा। उनकी कविता पर यह लेबल जैसे आज भी चस्पाँ हैं। मायकोवस्की के बारे में क़िताब लिखने वाले दिमित्री बीकफ़ नाम के एक रूसी लेखक का कहना है कि मायकोवस्की की कविता को पूरी तरह से अभी तक समझा नहीं गया है। उनकी कविता को हमारी भावी पीढ़ियाँ समझेंगी।
महान रूसी कवि व्लदीमिर मायकोवस्की ने कहा था -- मैं कवि हूँ, इसलिए दिलचस्प हूँ। उनकी इस पँक्ति में हमें अपनी तरफ़ से कुछ भी और जोड़ने की ज़रूरत महसूस नहीं होती।
-- अनिल जनविजय
( रेडियो रूस से साभार )
अनिल जनविजय के सौजन्य से ।
जैसे प्रेमचंद को आज तक नहीं समझा जा सका
जवाब देंहटाएंjo srijankarta hote hain unhe samajhna itna aasan kam nahi hota ....
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख....
जवाब देंहटाएंकवि दिलचस्प होते हैं.....बढ़िया!!!
सादर
अनु