16 सितंबर 2013

भारतीय भाषाओं में समान तत्त्व



   भारतीय भाषाओं में समान तत्त्व 

भारतीय भाषाओं में और उन के साहित्य में अनेक समानताएं या समान त्तत्त्व हैं 
, जिन की यहां चर्चा न कर के मैं उन की भाषिक समानताओं के बारे में कुछ कहना 
चाहता हूं । पहले लिपि को लीजिये । उत्तर भारत की अनेक भाषाओं की लिपि 
देव नागरी या उस में परिवर्तन कर बनी लिपि है । गुजराती , मराठी , बंगला और 
पंजाबी की लिपियां ऐसी ही हैं । सिन्धी अब फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है , पर 
उस की पुरानी लिपि शारदा लिपि थी , जो ब़ाह्मी लिपि से निकली थी । यही कहानी 
कश्मीरी भाषा की है जो पहले शारदा लिपि में लिखी जाती थी , पर अब फ़ारसी 
लिपि में लिखी जाती है । पर यह भी रोचक है कि अनेक कश्मीरी और सिन्धी अपनी 
भाषांओं को देवनागरी में लिखने का अभियान चला रहे हैं । तो ये भाषाएं दोनों 
लिपियों में लिखी जा रही हैं ।उर्दू की लिपि फ़ारसी है , पर हिन्दी और उर्दू में लिपि के 
अन्तर के बावजूद दोनों भाषाएँ सगी बहनें हैं । 
 अब अनेक भारतीय भाषाओं की शब्दसम्पदा को देखें । हिन्दी , बंगला , तेलुगु , 
तमिल , मलयालम , गुजराती , मराठी और पंजाबी में अनेक संस्कृत शब्द हैं । उर्दू 
भी संस्कृत शब्दों से ख़ाली नही है । संस्कृत यौवन ही उर्दू में ज़ोबन बन गया है ।
संस्कृत का कर्म ही उर्दू , हिन्दी में काम और कार्य ही काज , कारज बन गये हैं ।
संस्कृत का कर्म पंजाबी में कम्म , त्वमसि का तुसि ,अस्मि का असि बन गया है ।
अस्मि बंगला में आमि हो गया है । त्वमसि , अस्मिन , अस्मि आदि की छाया 
हिन्दी के है , हैं , हो , मैं , हम , तुम में मिलती है । सि की ध्वनि ही है बन गई है ।
अस्मिन से ही हम और हमें शब्द बने लगते हैं । संस्कृत शब्दों के सैंकड़ों तद्भव 
रूप हिन्दी में और दूसरी भाषाओं में चल रहे हैं ।
अनेक संज्ञाएं , सर्वनाम , विशेषण ,कारक और क़ियाएं अनेक भाषाओं में मिलती जुलती हैं । 
यहाँ इन के विस्तृत विवेचन का अवकाश नहीं है। नीचे मैं भारतीय भाषाओं में समान 
ध्वनियों पर श्री अखिलेश शर्मा के विचार प़स्तुत कर रहा हूँ ।
-- सुधेश 


हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की ध्वनियों की समानता 

क, ख, ग, घ, ङ- "कंठव्य" कहे गए, क्योंकि उच्चारण में ध्वनि कंठ से निकलती है। 

च, छ, ज, झ,ञ- "तालव्य" कहे गए, क्योंकि उच्चारण में जीभ लालू से लगती है।

ट, ठ, ड, ढ , ण- "मूर्धन्य" कहे गए, क्योंकि उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर है। 

त, थ, द, ध, न- "दंतीय" कहे गए, क्योंकि उच्चारण में जीभ दांतों से लगती है। 

प, फ, ब, भ, म,- "ओष्ठ्य" कहे गए, क्योंकि उच्चारण ओठों के मिलने पर होता है। 

एक बार बोल कर देखिये ।

संस्कृत आधारित सभी भाषाए जैसे हिंदी, बंगला, ओडिया, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम इत्यादि सभी भाषाओ में 
व्यंजन - " क से ज्ञ " 
और 
स्वर - " अ से अः " ही होता है 
बस उनकी लिपि और बोली अलग होती है।
और पढाया भी उसी क्रम में जाता है जिस क्रम में हम हिंदी सीखते है ।

  सभी को प्रेमपूर्वक यह एहसास दिलायें कि जो भाषा वे बोलते है , वह कितनी वैज्ञानिक है ।
उनका आत्म विश्वास इतना प्रबल कर दे कि वे अंग्रेजी बोलने वाले के सामने कभी भी खुद को छोटा न समझें |

______________________
क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है। एक बार बोल कर देखिये |

च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ लालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |

ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है। एक बार बोल कर देखिये |

त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है। एक बार बोल कर देखिये |

प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल कर देखिये ।
________________________

हम अपनी भाषा पर गर्व करते सही है परन्तु लोगो को इसका कारण भी बताइये । 
इतनी वैज्ञानिक दुनिया की कोई भाषा नही है ।

-- अखिलेश शर्मा 
( राँची , झारखण्ड ) ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Add