14 जनवरी 2014

मकर संक़ान्ति का इतिहास




ज्योतिष में मेरी आस्था नहीं है पर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आकाश
में अनेक ग़ह तथा उपग्रह एक रहस्यमय गुरुत्वाकर्षण की शक्ति से अपनी धुरी पर घूम
रहे हैं । ऐसे ग़हों में सूर्य और चन्द्रमा के अतिरिक्त हमारी पृथ्वी और मंगल भी हैं जो हमें
घूमती हुई दिखाईँ नहीं देती । पर रात और दिन पृथ्वी के घूमने के कारण ही बनते हैं ।
अनेक मौसमों का क़म भी पृथ्वी के सूर्य के चारों तरफ़ घूमने का परिणाम है। ये तथ्य कुछ
वैज्ञानिक तथ्यों की ओर संकेत करते हैं ।
 मकरक़ान्ति की ज्योतिष के अनुसार जिस प़कार व्याख्या की की जाती है , वह अन्ध
विश्वास के निकट है । पर मुझे पुष्पेन्द़ कुमार पाण्डेय का एक लेख रोचक लगा , जिस
में वैज्ञानिक ढंग से मकर संक़ान्ति को समझाया गया है । इसे पाठकों के अवलोकन
के लिए चिन्तनपल नामक ब्लाग में प़स्तुत कर रहा हू ।
-- सुधेश

मकर संक्रान्ति का इतिहास

6000 साल पुराना है संक्रांति का इतिहास। भूगर्भशास्त्रियों की मानें तो लैटिन अमेरिका
यानी मेसो अमेरिकी लोग जिन्हें मयन्स कहा जाता था, अपने समय में ही संक्रांति सहित
पोंगल, पाला कयालु जैसा ही त्योहार बसंत के मौसम में मनाते थे।
संक्रांति संस्कृत का शब्द है, जो सूरज के धनु राशि से मकर राशि में चले जाने का इशारा
करता है। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि इस दिन सूर्य खगोलीय पथ पर मकर राशि में
चला जाता है। यूं तो कुल 12 तरह की संक्रांतियां होती हैं, लेकिन अमूमन ‘संक्रांति’ शब्द
का प्रयोग ‘मकर संक्रांति’ के लिए ही किया जाता है।
20 से 23 दिसंबर के बीच ही सर्द संक्रांति शुरू हो जाती है, क्योंकि तभी से सूर्य उत्तरायण
यानी उत्तर दिशा की ओर जाने लगता है। यही वजह है कि विज्ञान के अनुसार 21 और 22
दिसंबर को साल का सबसे छोटा दिन कहा जाता है। इसके बाद से जब सूरज मकर राशि में
प्रवेश करता है तो दिन बड़े होने लग जाते हैं। यही वजह है कि असली उत्तरायण 21 दिसंबर को
होता है, जिसे मकर संक्रांति का असली दिन भी माना जाता है। लेकिन पृथ्वी के 23.45 डिग्री
मुड़ने की वजह से मकर संक्रांति को कुछ दिन बाद यानी 14 जनवरी को मनाया जाता है।

-- पुष्पेन्द़ कुमार पाण्डेय


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