क्या मंगल हमारा पितृलोक है ।
बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा। अर्से से मानव जाति को एलियन की तलाश है। रह-रह कर खबरें मिलती हैं कि उड़नतश्तरियों में आए और झलक दिखला कर गायब हो गए। इटली के शहर फ्लोरेंस में 25-30 अगस्त को हुई एक वैज्ञानिक कॉन्फ्रैंस में पेश एक रिपोर्ट का दावा है कि पृथ्वी के जीवजगत के पहले-पहले पुरखे संभवतः उल्काओं पर सवार होकर मंगल ग्रह से यहां आए थे। यानी एलियन हम पृथ्वी के निवासी ही हैं। पेड़-पौधों, कीट-पतंगों, मछलियों और पशु-पक्षियों के सांझे और पहले-पहले पुरखे, पृथ्वी पर नहीं, मंगल पर पनपे थे और बाद में उनकी कुछ संतानें पृथ्वी पर आ कर बस गईं।
प्रो. स्टीवन बेनर की इस रिपोर्ट के मुताबिक आज से तीन अरब साल पहले पृथ्वी की सतह और यहां की जलवायु जीवन के पनपने के लिए अनुकूल नहीं थी। जीवधारियों के शरीर जिन अणुओं से गठित होते हैं उनमें आरएनए, डीएनए और प्रोटीन मुख्य हैं। इन अणुओं, खासकर आरएनए के गठन में जो मूल तत्व सहायक हुए थे, वे तब मंगल पर मौजूद थे, पृथ्वी पर नहीं। इन खोजों के बाद ऐसा लगता है कि मंगल ग्रह हम पृथ्वीवासियों का पितृलोक है।
जिन डगरों पर मंगल और पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करते हैं वे आपस में पास-पास हैं। हर 26 महीने बाद जब मंगल पृथ्वी की बगल से होकर गुजरता है तब दोनों ग्रहों की आपसी दूरी केवल 6-7 करोड़ किलोमीटर रह जाती है। ऐसे मौकों पर यह संभव होता है कि पृथ्वी पर कुछ ऐसे कंकड़-पत्थर या ढेले आ गिरें जो किन्हीं धमाकों के कारण कभी मंगल की सतह से उछले थे। 1984 में अंटार्कटिका की बर्फ में दबा एक पथरीला ढेला मिला था। लगभग दो किलो भारी इस ढेले को नाम दिया गया था- एएलएच 84001।
इस ढेले के विश्लेषण से पता चला कि यह उल्का के रूप में लगभग 13 हजार साल पहले पृथ्वी पर गिरा था। यह भी अनुमान लगाया गया कि यह कभी मंगल ग्रह का अंश था और आज से लगभग 1.6 करोड़ साल पहले एक धमाके के साथ वहां से उछला था। इस ढेले की रासायनिक जांच से पता चला कि उसमें कुछ ऐसे ऑर्गेनिक कंपाउंड मौजूद हैं जिनका गठन, 3.6 अरब साल पहले, पानी की उपस्थिति में हुआ था। यानी यह ढेला इस बात का सबूत है कि मंगल की प्राचीन मिट्टी में जीव के निर्माण के लिये आवश्यक रासायनिक घोल विद्यमान था।
बीसवीं सदी की साइंस को स्पष्ट संकेत मिले हैं कि पृथ्वी के सभी प्राणी सांझे पुरखों की संतानें हैं। पृथ्वी का जीव-वृक्ष एक है और सभी प्रजातियां उसी से निकली हुई शाखाएं हैं। लेकिन एक सवाल बीसवीं सदी की साइंस ने इक्कीसवीं सदी के लिये छोड़ दिया है। वह यह कि हम प्राणियों के पहले-पहले पुरखे कहां से आए- पृथ्वी पर विकसित हुए या विकसित अवस्था में कहीं बाहर से आए? इस सवाल पर सहमति नहीं।
वैज्ञानिकों के एक ग्रुप का मानना है कि जीव की शुरुआत अणुओं-परमाणुओं की बहुत महीन और सिंपल लड़ियों से अकस्मात हुई थी। यह शुरुआत, किसी विधाता की सोची-समझी स्कीम के अनुसार नहीं, प्रकृति के नियमों की मजबूरी के कारण भी नहीं, बल्कि स्वतः और संयोगवश घटी थी- जैसे एक चिंगारी से जंगल की आग फैल जाए, एक तितली के पंख फड़फड़ाने से कोई तूफानी चक्रवात गतिशील हो जाए या बहती नदी में भंवर बन जाए, इत्यादि। और एक दफा जीवन की शुरुआत हो गई तो फिर उसका विकास पिछले तीन-चार अरब सालों में पृथ्वी की प्रकृति, उसके वातावरण और उसके इतिहास के अनगिनत हादसों का परिणाम था।
विज्ञान की दुनिया में इस सोच के विपरीत एक और सोच भी लोकप्रिय है। इसके अनुसार पृथ्वी पर द्रव्य (मैटर) के जो मूल तत्त्व मिलते हैं, ठीक वही तत्त्व पूरी सृष्टि में पाए जाते हैं। कार्बन का एक परमाणु जैसा पृथ्वी पर है, ठीक वैसा ही वह हमारे पड़ोसी ग्रह मंगल, पड़ोसी तारे रोहिणी और पड़ोसी गैलेक्सी एंड्रोमेडा में भी पाया जाता है। पृथ्वी के जीवधारियों के शरीर मुख्यतः कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सिजन, नाइट्रोजन और फास्फोरस से गठित हुए हैं। ये तत्त्व बाकी सृष्टि में भी लगभग सब जगह और पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। तत्त्वों का पदार्थों और यौगिकों में गठित होना भी स्वाभाविक है।
उदाहरण के लिये, हाइड्रोजन और ऑक्सिजन मिलकर पानी बन जाना केवल पृथ्वी का कॉपीराइट उद्योग नहीं। यही पानी कई ग्रहों, उपग्रहों और पुच्छलतारों में भी मिला है। जो ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल जीवधारियों के शरीर के आधारभूत अणु माने जाते हैं, वे भी न केवल दूसरे ग्रहों और पिंडों पर बल्कि स्पेस के खुले आंगन में भी पाए गए हैं।
प्रो. स्टीवन बेनर का प्रस्ताव वैज्ञानिकों की इस दूसरी सोच की पुष्टि करता है। इसके प्रकाश में मंगल ग्रह हम पृथ्वीवासियों का सचमुच पितृलोक जान पड़ता है। फिलहाल मंगल की तरफ रवाना इसरो का यान सितंबर, 2014 में मंगल के आंगन में पहुंचेगा और वहां अगर उसे हमारे पुरखों के भी पुरखे, या उनके कुछ निशान मिले तो उन्हें हम पृथ्वीवासियों का सलाम कहेगा।
-- बलदेव राज दावर
( मयूर विहार , दिल्ली )
नवभारत टाइम्स हिन्दी दैनिक से साभार ।
२१ दिसम्बर सन २०१३ को प़काशित ।
बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा। अर्से से मानव जाति को एलियन की तलाश है। रह-रह कर खबरें मिलती हैं कि उड़नतश्तरियों में आए और झलक दिखला कर गायब हो गए। इटली के शहर फ्लोरेंस में 25-30 अगस्त को हुई एक वैज्ञानिक कॉन्फ्रैंस में पेश एक रिपोर्ट का दावा है कि पृथ्वी के जीवजगत के पहले-पहले पुरखे संभवतः उल्काओं पर सवार होकर मंगल ग्रह से यहां आए थे। यानी एलियन हम पृथ्वी के निवासी ही हैं। पेड़-पौधों, कीट-पतंगों, मछलियों और पशु-पक्षियों के सांझे और पहले-पहले पुरखे, पृथ्वी पर नहीं, मंगल पर पनपे थे और बाद में उनकी कुछ संतानें पृथ्वी पर आ कर बस गईं।
प्रो. स्टीवन बेनर की इस रिपोर्ट के मुताबिक आज से तीन अरब साल पहले पृथ्वी की सतह और यहां की जलवायु जीवन के पनपने के लिए अनुकूल नहीं थी। जीवधारियों के शरीर जिन अणुओं से गठित होते हैं उनमें आरएनए, डीएनए और प्रोटीन मुख्य हैं। इन अणुओं, खासकर आरएनए के गठन में जो मूल तत्व सहायक हुए थे, वे तब मंगल पर मौजूद थे, पृथ्वी पर नहीं। इन खोजों के बाद ऐसा लगता है कि मंगल ग्रह हम पृथ्वीवासियों का पितृलोक है।
जिन डगरों पर मंगल और पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करते हैं वे आपस में पास-पास हैं। हर 26 महीने बाद जब मंगल पृथ्वी की बगल से होकर गुजरता है तब दोनों ग्रहों की आपसी दूरी केवल 6-7 करोड़ किलोमीटर रह जाती है। ऐसे मौकों पर यह संभव होता है कि पृथ्वी पर कुछ ऐसे कंकड़-पत्थर या ढेले आ गिरें जो किन्हीं धमाकों के कारण कभी मंगल की सतह से उछले थे। 1984 में अंटार्कटिका की बर्फ में दबा एक पथरीला ढेला मिला था। लगभग दो किलो भारी इस ढेले को नाम दिया गया था- एएलएच 84001।
इस ढेले के विश्लेषण से पता चला कि यह उल्का के रूप में लगभग 13 हजार साल पहले पृथ्वी पर गिरा था। यह भी अनुमान लगाया गया कि यह कभी मंगल ग्रह का अंश था और आज से लगभग 1.6 करोड़ साल पहले एक धमाके के साथ वहां से उछला था। इस ढेले की रासायनिक जांच से पता चला कि उसमें कुछ ऐसे ऑर्गेनिक कंपाउंड मौजूद हैं जिनका गठन, 3.6 अरब साल पहले, पानी की उपस्थिति में हुआ था। यानी यह ढेला इस बात का सबूत है कि मंगल की प्राचीन मिट्टी में जीव के निर्माण के लिये आवश्यक रासायनिक घोल विद्यमान था।
बीसवीं सदी की साइंस को स्पष्ट संकेत मिले हैं कि पृथ्वी के सभी प्राणी सांझे पुरखों की संतानें हैं। पृथ्वी का जीव-वृक्ष एक है और सभी प्रजातियां उसी से निकली हुई शाखाएं हैं। लेकिन एक सवाल बीसवीं सदी की साइंस ने इक्कीसवीं सदी के लिये छोड़ दिया है। वह यह कि हम प्राणियों के पहले-पहले पुरखे कहां से आए- पृथ्वी पर विकसित हुए या विकसित अवस्था में कहीं बाहर से आए? इस सवाल पर सहमति नहीं।
वैज्ञानिकों के एक ग्रुप का मानना है कि जीव की शुरुआत अणुओं-परमाणुओं की बहुत महीन और सिंपल लड़ियों से अकस्मात हुई थी। यह शुरुआत, किसी विधाता की सोची-समझी स्कीम के अनुसार नहीं, प्रकृति के नियमों की मजबूरी के कारण भी नहीं, बल्कि स्वतः और संयोगवश घटी थी- जैसे एक चिंगारी से जंगल की आग फैल जाए, एक तितली के पंख फड़फड़ाने से कोई तूफानी चक्रवात गतिशील हो जाए या बहती नदी में भंवर बन जाए, इत्यादि। और एक दफा जीवन की शुरुआत हो गई तो फिर उसका विकास पिछले तीन-चार अरब सालों में पृथ्वी की प्रकृति, उसके वातावरण और उसके इतिहास के अनगिनत हादसों का परिणाम था।
विज्ञान की दुनिया में इस सोच के विपरीत एक और सोच भी लोकप्रिय है। इसके अनुसार पृथ्वी पर द्रव्य (मैटर) के जो मूल तत्त्व मिलते हैं, ठीक वही तत्त्व पूरी सृष्टि में पाए जाते हैं। कार्बन का एक परमाणु जैसा पृथ्वी पर है, ठीक वैसा ही वह हमारे पड़ोसी ग्रह मंगल, पड़ोसी तारे रोहिणी और पड़ोसी गैलेक्सी एंड्रोमेडा में भी पाया जाता है। पृथ्वी के जीवधारियों के शरीर मुख्यतः कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सिजन, नाइट्रोजन और फास्फोरस से गठित हुए हैं। ये तत्त्व बाकी सृष्टि में भी लगभग सब जगह और पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। तत्त्वों का पदार्थों और यौगिकों में गठित होना भी स्वाभाविक है।
उदाहरण के लिये, हाइड्रोजन और ऑक्सिजन मिलकर पानी बन जाना केवल पृथ्वी का कॉपीराइट उद्योग नहीं। यही पानी कई ग्रहों, उपग्रहों और पुच्छलतारों में भी मिला है। जो ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल जीवधारियों के शरीर के आधारभूत अणु माने जाते हैं, वे भी न केवल दूसरे ग्रहों और पिंडों पर बल्कि स्पेस के खुले आंगन में भी पाए गए हैं।
प्रो. स्टीवन बेनर का प्रस्ताव वैज्ञानिकों की इस दूसरी सोच की पुष्टि करता है। इसके प्रकाश में मंगल ग्रह हम पृथ्वीवासियों का सचमुच पितृलोक जान पड़ता है। फिलहाल मंगल की तरफ रवाना इसरो का यान सितंबर, 2014 में मंगल के आंगन में पहुंचेगा और वहां अगर उसे हमारे पुरखों के भी पुरखे, या उनके कुछ निशान मिले तो उन्हें हम पृथ्वीवासियों का सलाम कहेगा।
-- बलदेव राज दावर
( मयूर विहार , दिल्ली )
नवभारत टाइम्स हिन्दी दैनिक से साभार ।
२१ दिसम्बर सन २०१३ को प़काशित ।
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन मिर्ज़ा गालिब की २१६ वीं जयंती पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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